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समालोचना

मोटिवेशनल कोट्स: जो बदल दें आपके जीवन की दिशा और दशा

 

फौजिया नसीम शाद

 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे जीवन आ रहे उतार -चढ़ाव ,समस्याओं के समाधान के साथ हमारी सफलता को स्थापित करने में ,हमें हमारे जीवन में कुछ करने की प्रेरणा प्रदान करने व हमारे लक्ष्य प्राप्ति में मोटिवेशनल कोट्स जिन्हें हम हिंदी में उद्धरण के नाम से भी जानते हैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,ये मोटिवेशनल कोट्स हमारे अंदर उत्साह का संचार ही नहीं करते बल्कि ये हमें स्वयं पर विश्वास करना भी सिखाते हैं।

हमारे जीवन में हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने में और हमारा सर्वश्रेष्ठ देने में मोटिवेशनल कोट्स की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, उपरोक्त लेख में हम मोटिवेशनल कोट्स की उपयोगिता को समझने का प्रयास करेंगे —

जीवन के उतार- चढ़ाव और विपरीत परिस्थितियों में मोटिवेशनल कोट्स सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

मोटिवेशनल कोट्स हताश और जीवन से निराश व्यक्ति में उर्जा,स्फूर्ति व उत्साह का संचार करते हैं।

किसी भी व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकालने मोटिवेशनल कोट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जाने कुछ ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण-

मोटीवेशनल कोट्स हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

सफलता की उम्म्मीद पर विश्वास न करने वाले कभी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ,सफलता के लिए सफलता पर विश्वास करना सीखिए।

स्वयं पर विश्वास करना सीखिए क्योकि स्वयं को निर्बल असहाय समझने वाले भी जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

जीवन में गलतियां करने से कभी न डरें ,सही मायने में गलतियां करके ही हम जीवन को ठीक ढंग से समझ पाते , मेरा लिखा अशआर भी यहां देखें- सीखने का हुनर नहीं आता, गलतियां हम अगर नहीं करते।

जो लोग स्वयं को नियंत्रित रखने में पूर्णत: सक्षम होते हैं उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता।

अपनी असफलता से कभी न घबराएं क्योंकि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है।

अपने परिश्रम पर विश्वास करने वाले जीवन में कभी असफलता का मुंह नहीं देखते।

स्वयं में सुधार के छोटे-छोटे प्रयास करते रहे ये आपके व्यक्तिव के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विपरीत परिस्थितियों से डर कर उनके समक्ष हाथ खड़े कर लेनाआपकी कायरता और आपका स्वयं पर विश्वास न होने की वास्तविकता को स्पष्ट करता है इससे बचे,हिम्मत और हौंसला रखें समय कैसा भी हो गुजऱ जाता है धैर्य के साथ विपरीत परिस्थियों से बाहर निकलने का प्रयास करते रहना चाहिए।

अपने प्रयासों में सफलता के लिए हर पल मोटिवेटेड रहें,आपके ऐसा करने से भी आपका लक्ष्य और आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त रहता है।

विषम परिस्थितियों से घबराकर हमारा उसके समक्ष हाथ खड़े कर देना, स्थिति को और भी गंभीर बनाता है

आधुनिक रेल की वास्तविकता

पंकज शर्मा तरुण
पंकज शर्मा तरुण

भारतीय रेल की वर्तमान तस्वीर कितनी बदली यह किसी से भी छुपा नहीं है। एक समय था जब पूरे देश में छोटी लाइन थी जिसे अंग्रेजों ने बिछाया था इसको मीटर गेज/नेरो गेज कहा जाता था।कोयले से चलने वाले काले रंग के इंजिन हुआ करते थे, जिसे भाप के इंजिन या स्टीम इंजिन कहते थे। जिन युवाओं ने यह नहीं देखे वे सनी देओल की फिल्म गदर टू देखेंगे तो उसमें इस को दिखाया गया है। ट्रेन की बोंगियां इतनी भारी और छोटी होती थी कि कोयले के इंजिन खींच नहीं पाते थे।बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव होता था।समय बदलता गया मीटर गेज परिवर्तन किया गया। ब्रॉड गेज रेल लाइन बिछने लगी डीजल के इंजिन आए, डबल लाइन बिछाई गई, बिजली के इंजिन आए, बिजली की लाइन बिछाई गई। बोंगियोंं को आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस किया गया, सीटों को आरामदायक बनाया गया।प्लेट फार्म हवाई अड्डे की तरह सर्व सुविधायुक्त बनने लगे।भारतीय रेल आज विश्व स्तर पर अपनी गाथा स्वयं लिख रही है।वंदे भारत, डेमो, मेमो, मेट्रो जैसे अनेक विकल्प आ गए ट्रेनों की गति बढ़ती जा रही है।

 

मगर यहां एक चूक भी हो रही है जिसका जिक्र करना भी अनिवार्य है। मैं पिछले दिनों एक तीर्थ यात्रा पर चलने वाली विशेष ट्रेन से रामेश्वरम गया था, जो इंदौर से शुरू हुई थी। इसमें लगभग एक हजार तीर्थ यात्री थे। आई आर सी टी सी के द्वारा इस यात्रा का संचालन किया जा रहा था ऐसी ट्रेनें बारहों मास चलाई जाती हैं। जिसमें सुबह की चाय नाश्ते से लेकर पेयजल की भी व्यवस्था होती है।साथ ही दोनों समय भोजन की व्यवस्था होती है।यात्रियों को जो भोजन परोसा जाता है उसकी गुणवत्ता की जांच की जाए तो निश्चित रूप से कह सकते हैं कि यह खाना इंसानों के खाने लायक तो नहीं होता! इसी प्रकार आप यदि प्रतिदिन या साप्ताहिक ट्रेनों में यात्रा करते हैं तब भी पेंट्री से खाना मंगवाते हैं तो मेरे खयाल से दूसरी बार कभी नहीं मंगवाएंगे! रोटियां जो दी जाती हैं उन्हें रोटियां या चपाती कहना रोटियों का मजाक उड़ाना या स्वयं का पूरी तरह अंधे होना कहा जा सकता है।

 

यदि जानवर को वह रोटी डाली जाए तो वह उसे कभी नहीं खाएगा।ऐसा प्रतीत होता है कि जो ठेकेदार यह खाना परोसते हैं उन्हें रोटी की या तो पहचान नहीं है या सब चलता है की सोच से यह कथित रोटी या चपाती परोसी जाती है।जिसे ठीक से सेंक कर नहीं दी जाती। कच्ची कागज़ की तरह बनी होती हैं। मैं तो माननीय रेल मंत्री जी को सुझाव दूंगा कि एक बार आम आदमी बनकर ट्रेन में यात्रा करें और खाना ऑर्डर कर खाएं तो आप को भी इनकी वास्तविकता से परिचय हो जाएगा। अब आते हैं हवाई अड्डे जैसे प्लेटफार्म पर ! केंटीन पर रेट लिस्ट लगी है, जिसमें चाय की मात्रा और कीमत लिखी है और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतें भी लिखी हैं चाय की कीमत सात रुपए लिखा है मगर दस रुपए से कम में भारत के किसी भी स्टेशन पर नहीं मिलती साथ ही चाय की गुणवत्ता इतनी घटिया होती है कि उसको पीने के बाद आदमी कसम खा लेता है कि इन आधुनिक प्लेट फार्म पर कभी चाय नहीं पियेगा!

 

आजकल वेफर्स बनाने वाली कंपनियों ने भी एक नई चाल पकड़ी है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे! रेलवे के केंटीन के लिए अलग से पेकिंग की जा रही है जिसकी मात्रा तो कम होगी ही कीमतें भी आम बाजार से अलग होती हैं।रेल नीर की बोतल पंद्रह रुपए में बिक्री करना है मगर केंटीन वाले सीधे बीस रुपए वसूल कर रहे हैं। बिसलरी के नाम पर स्थानीय नकली मिलते जुलते नामों की बोतल उसी कीमत पर बेची जा रही है इस ओर किसी भी रेल अधिकारी का ध्यान नहीं जाता या ध्यान नहीं देना चाहते? प्लेटफार्म पर लगे पेयजल के नल या तो बंद रखे जाते हैं या उनमें गंदा पानी दिया जाता है ताकि यात्री बोतल बंद पानी खरीदने को बाध्य हो जाए।मेरे जैसे अनेक लोग हैं जो सादा पानी ही पीते हैं बोतल का नहीं उनके लिए तो यह अभिशाप ही होता है। रेलवे के संबंधित अधिकारी इन जीवनदायिनी आवश्यकताओं के बिगड़े स्वरूप को सुधारने की ओर ध्यान दे ताकि लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ को रोका जा सके तथा जेबों को हल्का होने से बचाया जा सके।

विनायक फीचर्स

क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च अंक की गारंटी दे सकती है?

क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च अंक की गारंटी दे सकती है?

 

विजय गर्ग

 

सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षा बनाम जेईई मेन: क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च स्कोर की गारंटी दे सकती है?

 

 

संयुक्त प्रवेश परीक्षा (मुख्य) की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को अक्सर चुनौतीपूर्ण सवाल का सामना करना पड़ता है कि क्या जेईई मेन के लिए उनकी तैयारी के परिणामस्वरूप सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड कक्षा 12 बोर्ड परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन हो सकता है। आमतौर पर, जेईई मेन सत्र 1 सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा शुरू होने से 2-3 सप्ताह पहले होता है।

 

कई महत्वाकांक्षी इंजीनियर और आम जनता आमतौर पर मानते हैं कि जेईई मेन की तैयारी विज्ञान स्ट्रीम के लिए सीबीएसई/आईसीएसई/स्टेट 12वीं बोर्ड परीक्षा के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। हालाँकि, यह निर्धारित करना कि क्या जेईई की तैयारी कक्षा 12 सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक सुनिश्चित कर सकती है, एक जटिल प्रश्न है जिसका कोई सरल उत्तर नहीं है। परिणाम विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है:

 

सिलेबस में समानता

जेईई मेन और सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई कक्षा 12 दोनों में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित के विषय कई सामान्य विषयों को साझा करते हैं। इसका मतलब यह है कि यदि आप जेईई की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप स्वचालित रूप से सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई पाठ्यक्रम का एक अच्छा हिस्सा पढ़ लेंगे। हालाँकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि जेईई मेन विशिष्ट अवधारणाओं पर अधिक विस्तार से बताता है और इसमें अतिरिक्त विषय भी शामिल हैं जो सीबीएसई/राज्य पाठ्यक्रम में नहीं पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड अंग्रेजी, हिंदी और अन्य ऐच्छिक जैसे विषयों को कवर करते हैं, जो जेईई के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।

 

सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड स्कोर पर जेईई तैयारी का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव: जेईई के लिए अच्छी तैयारी करने से निश्चित रूप से भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित की आपकी समझ में वृद्धि हो सकती है, जिससे संभवतः आपके सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड के दौरान इन विषयों में बेहतर स्कोर प्राप्त होंगे। जेईई की तैयारी में नियोजित व्यावहारिक दृष्टिकोण आपके समस्या-समाधान कौशल को भी मजबूत कर सकता है, जो सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षाओं के लिए फायदेमंद है।

 

नकारात्मक प्रभाव: हालाँकि, केवल जेईई की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने से आपके सीबीएसई/आईसीएसई बोर्ड में अन्य विषयों की उपेक्षा हो सकती है, जिससे संभावित रूप से आपके समग्र स्कोर पर असर पड़ सकता है। साथ ही, जेईई की तैयारी की तेज़ गति और प्रतिस्पर्धी प्रकृति सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षाओं के व्यापक संदर्भ के अनुरूप नहीं हो सकती है।

 

 

विचार करने योग्य कारक

व्यक्तिगत सीखने की शैली: कुछ छात्र तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी स्थितियों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, जबकि अन्य अधिक संरचित और संतुलित दृष्टिकोण पसंद करते हैं। सीखने की शैलियों में विविधता इस बात पर प्रभाव डाल सकती है कि संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड) के अंकों के साथ कितनी प्रभावी ढंग से संरेखित होती है।

 

परीक्षा रणनीति: जब संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की बात आती है, तो अपने ज्ञान को शीघ्रता से लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। इसके विपरीत, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई) बोर्ड परीक्षाओं के लिए सभी विषयों पर गहरी पकड़ और अपने समय को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।

समय प्रबंधन: दोनों परीक्षाओं के लिए तैयारी करते समय अपने समय का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक विषय के लिए अपना समय उचित रूप से आवंटित करना, उनके महत्व को ध्यान में रखना और अपनी व्यक्तिगत शक्तियों और कमजोरियों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।

 

जेईई की तैयारी आपको अपने सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्डों में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में अच्छा स्कोर करने के लिए एक मजबूत आधार बनाने में मदद कर सकती है। हालाँकि, यह सफलता का कोई गारंटीकृत मार्ग नहीं है। केवल जेईई पर ध्यान केंद्रित करने से आप अन्य विषयों की उपेक्षा कर सकते हैं और यह हर किसी के लिए सबसे अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है।

अखंड सौभाग्य के लिए सौभाग्य सुंदरी व्रत

अखंड सौभाग्य के लिए सौभाग्य सुंदरी व्रत

 

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अशोक “प्रवृद्ध”

भारतीय पंचांग के अनुसार महीने में दो बार, पूर्णिमा और अमावस्या के बाद तीसरे दिन आने वाली तीसरी तिथि को तृतीया तिथि कहते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली तृतीया को कृष्ण पक्ष की तृतीया और अमावस्या से आगे आने वाली तृतीया को शुक्ल पक्ष की तृतीया कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं में तृतीया तिथि माता गौरी अर्थात देवी पार्वती की जन्म तिथि मानी जाती है। तृतीया तिथि की स्वामिनी माता गौरी हैं। तृतीया तिथि कार्यों में विजय प्रदान करने वाली होने के कारण इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है। किसी भी कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए इस तिथि का चयन अतिशुभ और पूर्णतः अनुकूल माना जाता है। इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, न्यायालयीन कार्यों के निष्पादन, शस्त्र क्रय, वाहन क्रय आदि कार्य करना शुभ माना जाता है। दोनों ही पक्षों की तृतीया तिथि को भगवान शिव के क्रीड़ारत रहने के कारण तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करने की मान्यता है। इसीलिए तृतीया तिथि को शिवपत्नी माता गौरी की पूजा का विधान है। यही कारण है कि माता गौरी अथवा भगवान शिव और उनकी अर्द्धांगिनी पार्वती की संयुक्त पूजन से संबंधित अनेक व्रत, पर्व व त्योहार तृतीया तिथि को मनाई जाती है। कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया, हरितालिका तृतीया, सौभाग्य सुंदरी आदि अनेक व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन ही संपन्न होता है। चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर तृतीया, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन अक्षय तृतीया, ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती मनाए जाने की परंपरा है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए भी माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी माना गया है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती ने अपनी कठिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया था।

 

 

तत्पश्चात गणेश और कार्तिकेय नामक दो पुत्रों की माता बनी। उसी समय से माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए मार्गशीर्ष अर्थात अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्य सुंदरी व्रत की परंपरा शुरू हुई। सौभाग्य सुंदरी नामक यह व्रत मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को अखंड सौभाग्य की सौंदर्य की कामना से विशेषकर महिलाओं के द्वारा किया जाता है। सनातन धर्म में मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया को मनाई जाने वाली सौभाग्य सुंदरी व्रत का महिलाओं के लिए बहुत ही खास महत्व है। मान्यता है कि यह महिलाओं को पुण्य फल प्रदान करता है और जीवन में आने वाले संकटों से भी बचाता है। इस वर्ष 2023 में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 30 नवम्बर बृहस्पतिवार के दिन पड़ने के कारण इस दिन सौभाग्य सुंदरी व्रत मनाई जाएगी। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश व कार्तिकेय का पूजन करती हैं। दांपत्य जीवन में प्रसन्नता और संतान की लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलने की मान्यता होने के कारण इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर विधि-विधान से भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती हैं।

 

 

सौभाग्य सुंदरी व्रत के दिन ब्रह्म बेला में जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर हाथ में जल ले व्रत का संकल्प लेकर और मंदिर की साफ-सफाई करना चाहिए। तत्पश्चात एक चौकी पर लाल अथवा पीले रंग का वस्त्र बिछ़ाकर उस पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। फिर माता पार्वती को सिंदूर का तिलक लगाना और भगवान शिव व गणेश को हल्दी अथवा चंदन का तिलक करना चाहिए। एक जल से भरा कलश स्थापित कर धूप -दीप जलाकर पूजा आरम्भ करना चाहिए। सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करना चाहिए। उनको जल से छींटे लगा फिर रोली से तिलक कर अक्षत लगाना चाहिए। मौली मोली चढ़ा चंदन व सिंदूर लगाना चाहिए। फिर फूलमाला और फल अर्पित करना चाहिए। गणेश को भोग के साथ सूखे मेवे, पान, सुपारी, लौंग, इलायची और दक्षिणा भी चढ़ाना शुभ माना गया है। फिर नवग्रह की पूजा करना चाहिए। भगवान कार्तिकेय की पूजा करना चाहिए। तत्पश्चात देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करना चाहिए।

 

माता पार्वती की पूजा के लिए देवी पार्वती की प्रतिमा को दूध, दही और जल स्नान कराकर उन्हें वस्त्र पहनाकर रोली चावल से तिलक करना चाहिए, मौली चढ़ाना चाहिए। उन्हें पुष्प अर्पित कर एक पान में दो सुपारी, दो लौंग, दो हरी इलाचयी, एक बताशा और एक रुपए रख चढ़ाकर माता पार्वती को सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए, घी का दीपक जलाना चाहिए और फिर मीठे का भोग लगा व्रत कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए। व्रत कथा पठन अथवा श्रवण के बाद चालीसा का पाठ करना शुभ माना गया है। माता पार्वती को अर्पित किया गया सोलह श्रृंगार बाद में व्रती महिलायें स्वयंके उपयोग में ला सकती है। देवी पार्वती की पूजा करते समय माता पार्वती से हाथ जोड़कर माता से दुखों और पापों का नाश करने, आरोग्य, सौभाग्य, ऋद्धि -सिद्धि और उत्तम संतान प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का जाप करना चाहिए –
ॐ उमाये नम:।
देवी देइ उमे गौरी त्राहि मांग करुणानिधे माम् अपरार्धा शानतव्य भक्ति मुक्ति प्रदा भव।।

 

तत्पश्चात भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करना चाहिए। बेलपत्र, आंकड़े और धतुरा अर्पित करना चाहिए। रोली-चावल से तिलक करना चाहिए। फल- फूल अर्पित कर भोग लगाना चाहिए, सूखे मेवे, और दक्षिणा अर्पित करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय ॐ नम: शिवाय- इस मंत्र का जाप करना चाहिए। माता पार्वती के तीज माता से संबंधित कथा का पाठ व श्रवण करना चाहिए। फिर उसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की आरती करना चाहिए। पूजा के बाद अपने परिवार की खुशहाली की कामना करना चाहिए।

 

तीज और करवा चौथ की भांति महत्वपूर्ण सौभाग्य सुंदरी व्रत जीवन में सकारात्मकता और सौभाग्य लाने के लिए मनाया जाता है। महिलाएं पति और संतान सुख के लिए पूजा-अनुष्ठान कार्य करती हैं। विवाह दोष से मुक्त होने और विवाह में देरी को दूर करने के लिए अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को करती हैं। मांगलिक दोष और कुंडली में प्रतिकूल ग्रह दोषों को समाप्त करने के लिए भी यह व्रत किया जाता है। सौभाग्य सुंदरी व्रत महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का वरदान होता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं के घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और अखंड सौभाग्य बना रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सौभाग्य सुंदरी व्रत करने से वैवाहिक जीवन का दोष भी दूर होता है और पति-पत्नी में प्रेम बना रहता है। यदि किसी लड़की के विवाह में देरी हो रही हो तो वो परेशानी भी ये व्रत करने से दूर हो सकती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सौभाग्य सुंदरी व्रत करने से पति और संतान की उम्र बढ़ती है और उनके जीवन में खुशियां बनी रहती हैं। जिन महिलाओं को वैवाहिक जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ रहा है और जिन अविवाहित लड़कियों के विवाह में देरी हो रही हो उन्हें ये व्रत अवश्य करना चाहिए।

फिर से ज़ख़्मी म्यांमार

फिर से ज़ख़्मी म्यांमार

SS Bhatia
● श्याम सुंदर भाटिया

दुनिया को जैसा अंदेशा था, बिल्कुल वैसा ही हुआ, लेकिन नोबल पुरस्कार विजेता एवम्
डेमोक्रेसी की प्रबल प्रहरी आन सान सू की सेना के इस खतरनाक इरादों को सूंघ नहीं पाईं।
पड़ोसी मुल्क म्यांमार में अंततः लोकतंत्र फिर से चोटिल हो गया है। बेइंतहा ताकतवर सेना के
तख्तापलट के बाद नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी-एनएलडी की सुप्रीमो अब सेना के कब्जे में हैं।
राष्ट्रपति यू विन मिंट को पदाच्युत करके सत्ता सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग को सौंप दी गई है।
उपराष्‍ट्रपति मिंट स्‍वे की कार्यकारी राष्‍ट्रपति के लिए ताजपोशी कर दी गई है। पांच दशक
तक सत्ता में रहने के बाद म्यांमार एक बार फिर सेना की गिरफ़्त में है। वहां एक साल के लिए
आपातकाल घोषित कर दिया गया है। 2015 में उम्मीद जगी थी, लोकतंत्र का उदय हो गया है।
संसदीय चुनाव में आन सान सू की की पार्टी एनएलडी बहुमत से सत्तारूढ़ तो हो गई, लेकिन
2008 के संविधान की जड़ों में गहरी सैन्य प्रावधान होने से न तो आन सान सू की राष्ट्रपति बन
पाईं और न ही एनएलडी सरकार के 2020 में सौ से अधिक संवैधानिक संशोधनों प्रस्तावों को
कानून में तब्दील करा पाईं। इन संशोधनों में वे अनुच्छेद भी शामिल थे, जिनकी वजह से आन
सान सू की राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य करार दे दी गईं थीं। इन मसौदों पर सेना के
प्रतिनिधियों का विरोध स्वाभाविक था। सच में हुआ भी ऐसा। सैन्य प्रतिनिधियों की मुखालफत
के चलते कोई भी प्रस्ताव मंजूर नहीं हो सका।

कभी बर्मा नाम से पहचाने जाने वाले म्यांमार में सेना और लोकतंत्र गाड़ी के दो पहियों के
मानिंद नहीं हो पाए। नतीजन लोकतंत्र बेपटरी हो गया। म्यांमार में तख्तापलट सियासत को
समझने के लिए 2008 के संविधान के पन्नों को पलटना जरूरी है। वहां के सैन्य तानाशाहों की
नीयत यह नहीं रही, म्यांमार की माटी में लोकतंत्र पुष्पित -पल्लवित हो। संसद की 25 प्रतिशत
सीटें वहां की सेना के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें 2008 के संविधान के मुताबिक रिजर्व हैं। इसके
अलावा सेना के प्रतिनिधियों के लिए तीन अहम मंत्रालय – गृह, रक्षा और सीमा मामलों से जुड़ा
मंत्रालय भी शामिल है। इसी वजह से सरकार वहां के संविधान में कोई भी सुधार करने में
नाकाम रहती है। म्यांमार के संविधान की जड़ों में सेना की गहरी पैठ है। यूं तो म्यांमार अब

संघीय गणराज्य व्यवस्था वाला देश है, जहां पांच साल में एक बार-एक साथ राष्ट्रीय, प्रांतीय
और क्षेत्रीय स्तर पर चुनाव होते हैं।

लोकतांत्रिक इतिहास में दूसरी बार हुए चुनाव में वैसे तो करीब सौ सियासी दलों ने भागीदारी
की, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दो दलों के बीच ही चुनावी जंग हुई। आन सान सू की की एनएलडी
और सेना के पूर्व अफसरों की पार्टी यूएसडीपी में मुख्य मुकाबला हुआ। इसमें आयरन लेडी के
दल एनएलडी के हाथों फिर सत्ता की चाबी आ गई। नवंबर 2020 के चुनावी नतीजों को
म्यांमार की सेना पचा नहीं पाई। आग बबूला, लेकिन शातिर सैन्य ताकतों ने राष्ट्रपति भवन से
लेकर चुनाव आयुक्त तक यह कह कर दस्तक दी, चुनाव नतीजों में बड़े स्तर पर हेराफेरी हुई है।
सैन्य ताकतों को इन दोनों उच्च वैधानिक संस्थाओं से मन मुताबिक पॉजिटिव रिस्पॉन्ड नहीं हुआ
तो रातों-रात बंदूकों के साए में चुनी हुई सरकार को बंधक बना लिया। सच्चाई यह है, फर्स्ट
फरवरी को नई संसद का सत्र का श्रीगणेश होना था, लेकिन अल सुबह आयरन लेडी आन सान
सू की , राष्ट्रपति यू विन मिंट समेत एनएलडी दिग्गज नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
दरअसल सैन्य ताकतों ने लोकतंत्र के जनादेश को सैनिकों के जूतों, रायफलों की नोकों और
ताकत की मदहोशी में कुचल दिया। सेना की सत्ता की भूख के चलते चंद बरसों बाद म्यांमार में
लोकतंत्र फिर लहूलुहान है।

म्यांमार का भारत से गहरा रिश्ता है। 1937 तक बर्मा भी भारत का अभिन्न अंग था। यह बाद
दीगर है, ब्रिटिश राज के अधीन था। भारत और म्यांमार की सीमाएं आपस में लगती हैं।
पूर्वोत्तर में चार राज्य -अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की 1600 किमी
लम्बी सीमा म्यांमार के साथ लगती है। भारत-म्यांमार के करीब 250 गांव सटे हैं। इनमें तीन
लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। ये अक्सर बॉर्डर क्रॉस करते हैं। म्यांमार में बौद्धों की संख्या
सर्वाधिक है। इस नाते भी भारत का सांस्कृतिक सम्बन्ध बनता है। पड़ोसी देश होने के कारण
भारत के लिए म्यांमार का आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक खासा महत्व है। भारत की
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है। म्यांमार न केवल सार्क, आसियान का
सदस्य है, बल्कि तेजी से बढ़ते दक्षिण पूर्व एशिया की अर्थ व्यवस्था का एक द्वार भी है। भारत के
लिए थाईलैंड और वियतनाम सरीखे देशों के बीच वह सेतु के मानिंद भी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र
मोदी सरकार के पड़ोसी पहले की नीति के तहत तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज

ने 2014 में म्यांमार की यात्रा की थी। आन सान सू की से भारत का विशेष रिश्ता है। इस
आयरन लेडी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज में अपनी स्टडी की। इनकी माताश्री
खिन की भारत में राजदूत भी रही हैं। आन सान सू की को संघर्ष करने का ज़ज़्बा विरासत में
मिला है। वह म्यांमार के राष्ट्रपिता आंग सांग की पुत्री है, जिनकी 1947 में राजनीतिक हत्या
कर दी गई थी। उन्होंने बरसों-बरस जेल में तो रहना पसंद किया, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों
से कभी समझौता नहीं किया। भारत से सू का गहरा नाता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति गहरी
आस्था रखने वाली सू की को नोबल शांति पुरस्कार के अलावा भारत का प्रतिष्ठित जवाहर लाल
नेहरू पुरस्कार भी मिल चुका है।

सैन्य तख़्तापटल के बाद म्यांमार के हालात नाजुक हैं। बड़े शहरों में मोबाइल, इंटरनेट डाटा
और फ़ोन सर्विस बंद कर दी गई है। सरकारी चैनल एमआरटीवी का प्रसारण नहीं हो रहा है।
म्यांमार की राजधानी नेपिडॉ के साथ सम्पर्क टूट चुका है। सबसे बड़े शहर यंगून इंटरनेट
कनेक्शन तक सीमित है। बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टीवी समेत अंतर्राष्ट्रीय प्रसारकों को ब्लॉक कर
दिया गया है। स्थानीय स्टेशन ऑफ एयर कर दिए गए हैं। बैंकों ने फिलहाल सभी आर्थिक
सेवाओं को रोक दिया है। नकदी की कमी न हो, इस आशंका ने मद्देनजर यंगून में एटीएम के
बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हैं। भारत, अमेरिका, यूएनओ, ब्रिटेन समेत दुनिया के बड़े देशों ने
म्यांमार के बिगड़ते हालात पर गहरी चिंता जताई है। भारत का विदेश मंत्रालय म्यांमार की
स्थिति पर पैनी नजर रखे हुए है। बीबीसी दक्षिण-पूर्व एशिया के संवाददाता जॉनथन हेड ने
मौजूदा हालात पर सटीक कमेंट करते हुए कहा, म्यांमार सेना का यह कदम दस साल पहले
उसी के बनाए संविधान का उल्लंघन है।

( लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं। )

पेंडुलम की मानिंद नेपाली डेमोक्रेसी

पेंडुलम की मानिंद नेपाली डेमोक्रेसी

SS Bhatia
● श्याम सुंदर भाटिया

● श्याम सुंदर भाटिया
दुनिया में मानवीय हक.हकुकों के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली मुफीद मानी जाती है। अमेरिका से लेकर हिंदुस्तान की सियासत में लोकतंत्र के सफर की मिसाल बेमिसाल है। अमेरिका के ताजा तरीन जख्मों को न कुरेदें तो दोनों लोकतांत्रिक देशों का सिस्टम दीगर देशों के लिए अनुकरणीय है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के सियासी और लोकतांत्रिक नासूरों का जिक्रा फिर कभी करेंगेए लेकिन फिलवक्त भारत समेत दुनिया की नजर नेपाल पर है। नेपाल में लोकतंत्र पेंडुलम मानिंद हिचकोले भर रहा है। संविधान और लोकतांत्रिक प्रणाली के दायरे में नेपालए वहां के सियासी संग्रामए राजनीतिक गठबंधन की विश्वसनीयताए लोकतांत्रिक ढांचाए राजशाही.लोकशाही पर मंथन की दरकार है। नेपाल के 250 बरसों के इतिहास में डेमोक्रेसी सिस्टम नई.नवेली दुल्हन की मानिंद है। अंध ड्रैगन समर्थक वहां के प्रधानमंत्री श्री केपी शर्मा ओली और कल तक उनके सियासी मित्र रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच सियासी चालें दुनिया के सामने हैं। नेपाल में सत्तारुढ़ दल. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी .एनसीपी अब ओली.प्रचंड खेमों में दो फाड़ है। एक.दूसरे को नीचा दिखाने और एक.दूसरे से शक्तिशाली होने की होड़ लगी है। शतरंज के खेल की मानिंद शह और मात की चालें जारी हैं। प्रधानमंत्री ओली ने गए साल 20 दिसंबर को सत्ता संघर्ष के चलते अचानक प्रतिनिधि सभा को भंग करके राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी से देश में नए सिरे से चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी थी। राष्ट्रपति भवन ने भी बिना समय गंवाए चंद घंटों बाद प्रतिनिधि सभा को भंग करके तीस अप्रैल और दस मई को चुनाव कराने का बिगुल बजा दिया थाए लेकिन प्रचंड गुट ने ओली के इस असंवैधानिक कदम को ललकारते हुए कहाए नेपाल में मुश्किल से हासिल की गई संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य प्रणाली को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। प्रचंड भी चुप बैठने वालों में नहीं हैं। उन्होंने करीब एक माह बाद 22 जनवरी को ओली के खिलाफ एक बड़ी रैली करके 24 जनवरी को कार्यवाहक पीएम ओली को न केवल कम्युनिस्ट पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दियाए बल्कि प्रचंड गुट ने ओली की सदस्यता को भी प्रभाव से रद्द कर दिया। इससे पूर्व प्रचंड गुट ओली को अध्यक्ष पद से भी हटा चुका है।

ऐसे में पड़ोसी देश नेपाल में बड़ा सियासी भूचाल आ गया है। 68 साल के ओली के सियासी भविष्य पर सवाल दर सवाल उठने लगे हैं। क्या ओली अपने सियासी दुश्मन प्रचंड से हार मान लेंगेघ् पार्टी से बेदखल होने के बाद ओली की पीएम की कुर्सी चली जाएगीघ् क्या सुप्रीम कोर्ट ओली के पक्ष में फैसला देगी या फिर विपक्ष मेंघ् यह बाद दीगर हैए ओली का प्रतिनिधि सभा को भंग किया जाना संवैधानिक नहीं है। नेपाल के संविधान विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य इसे नेपाल के नए संविधान के साथ धोखा बताते हैं। कहते हैंए सिर्फ सरकार के अल्पमत या त्रिशंकु होने पर ही इसे भंग किया जा सकता हैए लेकिन अभी ऐसे हालात नहीं थे। नेपाली सियासी गलियारों में चर्चा हैए मनभेद और मतभेद इतने आगे बढ़ चुके हैंए राजनीति के चतुर खिलाड़ी ओली भी अपने सियासी दुश्मन से सहज पराजित होने वाले नहीं हैं। अब दोनों ही गुट नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी और चुनाव चिन्ह को लेकर अपने.अपने दावे पेश करेंगे। सत्ता की भूख की यह लड़ाई फिर से चुनाव आयोग से लेकर शीर्ष अदालत की शरण में होगी। प्रतिनिधि सभा भंग करने के खिलाफ प्रचंड खेमा पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा है। एनसीपी से ओली को बाहर करने से पहले प्रचंड गुट ने वैधानिक गुणा.भाग किया है। प्रचंड गुट ने इस बड़े एक्शन से पहले ओली को पार्टी विरोधी गतिविधियों और संसद को भंग किए जाने के फैसले को लेकर को उनसे जवाब.तलब किया था। जारी कारण बताओ नोटिस में तीन दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया थाए लेकिन ओली ने कोई जवाब नहीं दिया।

नेपाल में प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय सभा दो सदन हैं। सरकार बनाने के प्रतिनिधि सभा में बहुमत जरुरी होता है। प्रतिनिधि सभा के 275 ने से 170 सदस्य सत्तारुढ़ एनसीपी. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास हैं। नेपाल में 2015 में नया संविधान बना था। 2017 में अस्तित्व में आई संसद का कार्यकाल 2022 तक का था। 2018 में ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन .यूएमएल और पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन ;माओवादी केंद्रितद्ध का विलय होकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी .एनसीपी का गठन हुआ था। विलय के समय तय हुआ थाए ढाई वर्ष ओली पीएम रहेंगे तो ढाई वर्ष प्रचंड पीएम रहेंगे। प्रचंड चाहते थेए एक पद.एक व्यक्ति के सिद्धांत पर एनपीसी को चलाया जाएए इसीलिए प्रचंड ओली पर पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव डालते रहेए लेकिन ओली टस से मस नहीं हुए थे। इसके उलट जब प्रचंड को पीएम का पद सौंपने का वक्त आया तो उन्होंने संसद भंग करने की सिफारिश कर दी थी। उल्लेखनीय हैए 44 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी में भी ओली अल्पमत में थे। प्रचंड के पास 17ए ओली के पास 14 और नेपाल के साथ 13 सदस्य हैं। प्रतिनिधि सभा भंग करने से पूर्व भी दिलचस्प सियासी कहानी है। एनसीपी के असंतुष्ट प्रचंड गुट ने 20 दिसंबर की सुबह पीएम ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पत्र का नोटिस दिया था। प्रचंड खेमे ने राष्ट्रपति से विशेष सत्र बुलाने का आग्रह भी किया थाए लेकिन ओली समर्थकों को इसकी भनक लग गई थी। साथ ही साथ ओली अपने खिलाफ राजशाही वापसी को लेकर देश में हो रहे धरने और प्रदर्शन से भी खासे तनाव में थे। नतीजन प्रधानमंत्री ओली ने आनन.फानन में संसद भंग करने की सिफारिश कर दी थी। बताते हैंए इस अविश्वास प्रस्ताव को प्रचंड खेमे के मंत्रियों और 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त था।


नेपाल में राजशाही और लोकशाही की लुका.छिपी 70 बरसों से जारी है। इस पड़ोसी देश को पहले गोरखा राज्य के नाम से जाना जाता था। इसके इतिहास का जिक्र फिर कभी करेंगे। नेपाल में सबसे पहले 1951 में लोकतंत्र की स्थापना हुई। 1960 में राजा महेंद्र को लोकशाही अनुकूल नहीं लगी तो उन्होंने संसद को भंग कर दिया। इसी के साथ नेपाल में लोकतान्त्रिक व्यवस्था खत्म हो गई। राजशाही का फिर से कब्जा हो गया। 2008 में नेपाली राजशाही की फिर विदाई हो गई। माओवादियों ने चुनाव जीतने के बाद राजा को अपदस्थ कर दिया था। अंततः नेपाल में नया संविधान 20 सितम्बरए 2015 को लागू हुआ। भारत के डॉण् भीमराव आंबेडकर की मानिंद नेपाल की संविधान रचियता भी दलित समाज की कृष्णा कुमार पेरियार हैं। नेपाल इससे पहले दुनिया का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र थाए लेकिन मौजूदा संविधान में नेपाल धर्मनिरपेक्ष है। इसमें कोई शक नहींए नेपाली डेमोक्रेसी आजकल कड़े इम्तिहान से गुजर रही है। संत कबीर दास ने कहा थाए बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए३ सरीखा कथन मौजूदा वक्त में नेपाल के प्रधानमंत्री श्री केपी शर्मा ओली पर शत.प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है।

: लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 56वीं पुण्यतिथि

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 56वीं पुण्यतिथि

मैथिली शरण गुप्त की कविता में राष्ट्र प्रेम की भावना भरी है : डॉ. प्रदीप

देवघर : वतन के राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर ‘पारो की याद में’ काव्य-संकलन के कवि सह विवेकानंद शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्थान के केंद्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव ने कहा- आज ही के दिन सन 1964 को मैथिलीशरण जी की मृत्यु हुई थी। उनका जन्म 3 अगस्त सन 1886 ई. में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता कौशिल्या बाई की तीसरी संतान के रुप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। अपने पिता जी से ही प्रेरणा पाकर गुप्त जी बाल्यावस्था से काव्य साधना में लग गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। कक्षा नौ तक इन्होने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की फिर पढ़ना छोड़कर घर पर ही अध्ययन करने लगे। आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आकर इन्होने काव्य रचना प्रारम्भ की।

वे बड़े विनम्र, सरल तथा स्वाभिमानी थे। इनके अध्ययन, इनकी कविता एवं राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना ने इन्हें बहुत उच्च स्थान प्रदान कराया। हिन्दी कविता के इतिहास में उनका यह सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा उनके काव्य के प्रथम गुण हैं, जो पंचवटी से लेकरजयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक “सरस्वती” में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई। उनका प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग’ तथा वाद में “जयद्रथ वध प्रकाशित हुई।

उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रन्थ “मेघनाथ वध”, “ब्रजांगना” का अनुवाद भी किया। सन् 1914 ई. में राष्टीय भावनाओं से ओत-प्रोत “भारत भारती” का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। सन 1931 के लगभग वे राष्ट्रपिता गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। ‘यशोधरा’ सन् 1932 ई. में लिखी। गांधी जी ने उन्हें “राष्टकवि” की संज्ञा प्रदान की। सन् 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अंतर्गत जेल गये। आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया। वे 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने उन्हें “पद्म विभूषण’ एवं 1954 में पद्म भूषण से सम्मानित किया।

उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं- महाकाव्य: साकेत, पंचवटी, किसान, काबा और कर्बला, रंग में भंग; खंड काव्य: जयद्रथ वध, भारत भारती, यशोधरा, सिद्धराज, हिन्दू, शकुन्तला, नहुष, द्वापर, बापू, , अजित, अर्जन और विसर्जन, अंजलि और अर्ध्य कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध आदि; अनूदित- मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम आदि, नाटक के रूप में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू आदि । उन्होंने 5 मौलिक नाटक लिखे हैं- ‘अनघ’, ‘चन्द्रहास’, ‘तिलोत्तमा’, ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’ । उन्होने भास के चार नाटकों- ‘स्वप्नवासवदत्ता’, ‘प्रतिमा’, ‘अभिषेक’, ‘अविमारक’ का अनुवाद किया है।

ये नया भारत है, अब महिलाओं ने अपनी ताकत को पहचान लिया है

ये नया भारत है, अब महिलाओं ने अपनी ताकत को पहचान लिया है

हर वर्ष 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हमारे देश की महिलायें आज हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर अपनी ताकत का अहसास करवा रही हैं। भारत में रहने वाली महिलाओं के लिये इस वर्ष का महिला दिवस कई नई सौगातें लेकर आया है। महिलाओं के लिये अच्छी खबर यह है कि इस बार संसद में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 78 हो गयी है जो अब तक की सबसे ज्यादा है। कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने भी महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया है। अब सेना में भी महिलायें पुरूषों के समान पदों पर काम कर पायेंगी। इससे महिलाओं का मनोबल बढ़ेगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिलाओं के अधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए दुनियाभर में कुछ मापदंड निर्धारित किए हैं। महिला दिवस उन महिलाओं को याद करने का दिन है। जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। वर्तमान दौर में महिलाओं ने अपनी ताकत को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी सीख लिया है। अब महिलाओं ने इस बात को अच्छी तरह जान लिया है कि वे एक-दूसरे की सहयोगी हैं।

महिलाओं का काम अब केवल घर चलाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। परिवार हो या व्यवसाय, महिलाओं ने साबित कर दिखाया है कि वे हर वह काम करके दिखा सकती हैं जिसमें अभी तब सिर्फ पुरुषों का ही वर्चस्व माना जाता था। शिक्षित होने के साथ ही महिलाओं की समझ में वृद्धि हुयी है। अब उनमें खुद को आत्मनिर्भर बनाने की सोच पनपने लगी है। शिक्षा मिलने से महिलाओं ने अपने पर विश्वास करना सीखा है और घर के बाहर की दुनिया को जीतने का सपना सच करने की दिशा में कदम बढ़ाने लगी हैं।

सरकार ने महिलाओं के लिए नियम-कायदे और कानून तो बहुत सारे बना रखे हैं किन्तु उन पर हिंसा और अत्याचार के आंकड़ों में अभी तक कोई कमी नहीं आई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की उम्र वाली 70 फीसदी महिलाएं किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का शिकार होती हैं। इनमें कामकाजी व घरेलू महिलायें भी शामिल हैं। देशभर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लगभग 1.5 लाख मामले सालाना दर्ज किए जाते हैं। जबकि इसके कई गुणा अधिक मामले दबकर रह जाते हैं।

घरेलू हिंसा अधिनियम देश का पहला ऐसा कानून है जो महिलाओं को उनके घर में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार सुनिश्चित करता है। इस कानून में महिलाओं को सिर्फ शारीरिक हिंसा से ही नहीं बल्कि मानसिक, आर्थिक एवं यौन हिंसा से बचाव करने का अधिकार भी शामिल है। भारत में लिंगानुपात की स्थिति भी अच्छी नहीं मानी जा सकती है। लिंगानुपात के वैश्विक औसत 990 के मुकाबले भारत में 941 ही है। हमें भारत में लिंगानुपात सुधारने की दिशा में विशेष काम करना होगा ताकि लिंगानुपात की खराब स्थिति को बेहतर बनायी जा सके।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दोगुने से भी अधिक हुए हैं। पिछले दशक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ अपराध के 26 मामले दर्ज होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के प्रति की जाने वाली क्रूरता में वृद्धि हुई है। 

देखा जाये तो स्वतंत्रता प्राप्ति के 73 वर्ष बाद भी भारत में 70 प्रतिशत महिलाएं अकुशल कार्यों में लगी हैं जिस कारण उनको काम के बदले मजदूरी भी कम मिलती है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं औसतन हर दिन छह घण्टे ज्यादा काम करती हैं। चूल्हा-चौका, खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों का पालन पोषण करना तो महिलाओं के कुछ ऐसे कार्य हैं जिनकी कहीं गणना ही नहीं होती है। दुनिया में काम के घण्टों में 60 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान महिलाएं करती हैं जबकि उनका संपत्ति पर मात्र पांच प्रतिशत ही मालिकाना हक है।

कहने को तो सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं एकजुट होकर महिला दिवस को मनाती हैं। मगर हकीकत में यह सब बातें सरकारी दावों व कागजों तक ही सिमट कर रह जाती हैं। देश की अधिकांश महिलाओं को तो आज भी इस बात का पता नहीं है कि महिला दिवस का मतलब क्या होता है। महिला दिवस कब आता है कब चला जाता है। भारत में अधिकतर महिलायें अपने घर-परिवार में इतनी उलझी होती हैं कि उन्हें बाहरी दुनिया से मतलब ही नहीं होता है। लेकिन इस स्थिति को बदलने का बीड़ा महिलाओं को स्वयं उठाना होगा। जब तक महिलायें स्वयं अपने सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं करेंगी तब तक समाज में उनका स्थान गौण ही रहेगा।

बड़े दुख की बात है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमट कर रह गई हैं। एक ओर शहरों में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं जो पुरुषों के अत्याचारों का मुकाबला करने में सक्षम है। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाओं को तो अपने अधिकारों का भी पूरा ज्ञान नहीं हैं। वे चुपचाप अत्याचार सहती रहती हैं और सामाजिक बंधनों में इस कदर जकड़ी हैं कि वहां से निकल नहीं सकती हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का जरूर कुछ असर दिखने लगा है। इस अभियान से अब देश में महिलाओं के प्रति सम्मान बढ़ने लगा है। जो इस बात का अहसास करवाता है कि आने वाले समय में महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया सकारात्मक होने वाला होगा। विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है। आज भी महाराष्ट्र के बीड़, गुजरात के सूरत, भुज में घटने वाली महिला उत्पीड़न की घटनायें सभ्य समाज पर एक बदनुमा दाग लगा जाती हैं।

देश में आज भी सबसे ज्यादा उत्पीड़न महिलाओं का ही होता है। आये दिन महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, प्रताड़ना की घटनाओं से समाचार पत्रों के पन्ने भरे रहते हैं। महिलाओं के साथ आज के युग में भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। बाल विवाह की घटनाओं पर पूर्णतया रोक ना लग पाना एक तरह से महिलाओं का उत्पीड़न ही है। कम उम्र में शादी व कम उम्र में मा बनने से लड़की का पूर्णरूपेण शारीरिक व मानसिक विकास नहीं हो पाता है। आज हम बेटा बेटी एक समान की बातें तो करते हैं मगर बेटी होते ही उसके पिता को बेटी की शादी की चिंता सताने लग जाती है। समाज में जब तक दहेज लेने व देने की प्रवृत्ति नहीं बदलेगी तब तक कोई भी बाप बेटी पैदा होने पर सच्चे मन से खुशी नहीं मना सकता है।

महिला दिवस पर देश भर में अनेकों स्थान पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मगर अगले ही दिन उन सभी बातों को भुला दिया जाता है। समाज में अभी पुरूषवादी मानसिकता मिट नहीं पायी है। समाज में अपने अधिकारों एवं सम्मान पाने के लिए अब महिलाओं को स्वयं आगे बढ़ना होगा। देश में जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवं पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक महिला सशक्तिकरण की बातें करना बेमानी होगा।

रमेश सर्राफ

मज़बूत है भारतीय बैंकिंग व्यवस्था, सुरक्षित हैं बैंकों के ग्राहकों के हित

मज़बूत है भारतीय बैंकिंग व्यवस्था, सुरक्षित हैं बैंकों के ग्राहकों के हित

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने निजी क्षेत्र के एक बैंक, येस बैंक, के लेन-देन पर अधिस्थगन का आदेश दिया है। इस अधिस्थगन आदेश के अनुसार, इस बैंक के जमाकर्ता, अगले आदेश तक रुपए 50,000 तक की जमाराशि ही अपने खातों से निकाल पाएँगे एवं यह बैंक अब नए निवेश नहीं कर सकेगा। इस बैंक के बोर्ड को स्थगित कर भारतीय स्टेट बैंक के एक अनुभवी कार्यपालक को बैंक का प्रशासक नियुक्त किया गया है।

सामान्यतः बैंकें वित्तीय मध्यस्थता का कार्य करती हैं। जमा-कर्ताओं से जमाराशियाँ स्वीकार की जाती हैं एवं इन जमाराशियों को ऋण के रूप में उधार-कर्ताओं को प्रदान किया जाता है। उधारकर्ताओं से यह अपेक्षा रहती है कि समय पर वे ऋण की अपनी किश्तों की राशि बैंक को चुकाएँगे ताकि बैंक अपनी तरलता की स्थिति को ठीक तरीक़े से बनाए रख सकें। यदि उधार-कर्ता ऋण की अदायगी समय पर नहीं करेंगे तो बैंकों के लिए आस्ति-देयता असंतुलन, तरलता एवं शोध-अक्षमता की समस्या खड़ी हो जाएगी तथा हो सकता है कि बैंकों को अपनी तरलता एवं शोध-अक्षमता की समस्या से निपटने के लिए पूँजी की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़े ताकि जमा-कर्ताओं को उनकी जमाराशियों का भुगतान समय पर किया जा सके। 

इसी प्रकार, येस बैंक में भी पिछले लगभग 18 माह से वित्तीय समस्याएँ देखने में आ रहीं थी एवं बैंक द्वारा अतिरिक्त पूँजी की व्यवस्था हेतु लगातार प्रयास किए जा रहे थे। परंतु, बैंक को अतिरिक्त पूँजी की व्यवस्था करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। येस बैंक के पास रुपए 2 लाख करोड़ की जमा राशियाँ हैं, बैंक की बैलेन्स शीट का आकार रुपए 4 लाख करोड़ का है तथा बैंक के पास लगभग 50 लाख ग्राहक है। इतने बड़े आकार के बैंक पर यदि उसके ग्राहकों का विश्वास टूट जाए तो इसका प्रभाव पूरे बैंकिंग उद्योग पर भी पड़ सकता है एवं अन्य बैंक भी इसके प्रभाव में आ सकते हैं। येस बैंक की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई हैं। शायद पूर्व में ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों की पहचान सही तरीक़े से नहीं की गई है। अतः बैंक में तरलता के साथ ही शोध-अक्षमता की समस्या भी दिखाई दे रही है। येस बैंक दरअसल अपने ग्राहकों को उनकी जमाराशियों पर तुलनात्मक रूप से अधिक ब्याज प्रदान कर रहा था एवं इन जमाराशियों को तुलनात्मक रूप से अधिक जोखिम भरी आस्तियों में निवेश कर रहा था ताकि अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सके। इस प्रकार की नीति पर चलने के कारण बैंक को नुक़सान उठाना पड़ा है एवं ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों की मात्रा में तेज़ी से वृद्धि देखने में आई है। साथ ही, बैंक में निगमित अभिशासन सम्बंधी कुछ मुद्दे भी सतह पर दिखाई देने लगे थे। अतः उक्त वर्णित समस्त बिंदुओं पर गहनता पूर्वक विचार करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक को उक्त वर्णित कठोर क़दम उठाने पड़े हैं। 

देश में भारतीय रिज़र्व बैंक, विभिन्न वित्तीय संस्थानों के लिए अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है। अतः भारतीय रिज़र्व बैंक ने येस बैंक को विफल होने से बचाने के लिए देश हित में यह निर्णय लिया कि भारतीय स्टेट बैंक के एक अनुभवी कार्यपालक को येस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया है ताकि वह येस बैंक की वित्तीय स्थिति का सही तरीक़े से आँकलन कर सके एवं आवश्यकता अनुसार भारतीय स्टेट बैंक येस बैंक में अपना निवेश पूँजी के रूप में कर सके। भारतीय स्टेट बैंक, येस बैंक में लगभग 49 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी ख़रीद सकता है। 

केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं भारतीय स्टेट बैंक लगातार यह घोषणा कर रहे हैं कि येस बैंक के आकार को देखते हुए उसे विफल होने नहीं दिया जाएगा क्योंकि इस बैंक से लगभग 50 लाख ग्राहकों के हित जुड़े हुए हैं, देश की अर्थव्यवस्था में इस बैंक का योगदान है एवं बैंक के कई कर्मचारी भी कार्यरत हैं। अतः देश में येस बैंक के ग्राहकों को बिल्कुल भी परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। येस बैंक में कार्यपालक के नियुक्त किए जाने के बाद से ऐसे संकेत मिलने भी लगे हैं कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा येस बैंक पर लगाए गए अधिस्थगन आदेश को शीघ्र ही हटाया भी जा सकता है एवं बैंक में सभी बैंकिंग कार्य सुचारू रूप से होने लगेंगे। 

येस बैंक में उत्पन्न हुई उक्त परिस्थितियाँ बैंक के अपने निर्णयों के चलते ही उत्पन्न हुई हैं। यह बैंकिंग की प्रणालीगत असफलता के चलते नहीं हुआ है एवं पूर्व में भी देश में इस प्रकार की कई घटनाएँ देखने में आई हैं, जिन्हें सफलता पूर्वक सम्हाल लिया गया है। वर्ष 2006-07 में बैंक ओफ़ राजस्थान में भी इसी प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई थीं। बैंक ऑफ़ राजस्थान का आईसीआईसीआई बैंक में विलय कर दिया गया था। इसी प्रकार, आईसीआईसीआई बैंक में भी तरलता सम्बंधी समस्या को हल करने हेतु भारतीय स्टेट बैंक आगे आया था एवं रुपए 1,000 करोड़ रुपए की तरलता प्रदान की थी जिसके चलते आईसीआईसीआई बैंक को भी तरलता के संकट से उबार लिया गया था। ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का भी ऑरीएंटल बैंक ओफ़ कामर्स में विलय कर इसी प्रकार की समस्या को हल कर लिया गया था। 

भारतीय बैंकिंग उद्योग आज बहुत ही मज़बूत स्थिति में है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू पूँजी पर्याप्तता सम्बंधी बाज़ल कमेटी के नियमों को भारतीय बैंकों में लागू किया जा चुका है एवं आज भारत में कई सरकारी क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के बैंकों का पूँजी पर्याप्तता अनुपात बेंचमार्क से कहीं अधिक है। अतः यह पूरी उम्मीद की जानी चाहिए की येस बैंक में आए संकट को भारतीय रिज़र्व बैंक एवं भारतीय स्टेट बैंक द्वारा सफलता पूर्वक हल कर लिया जाएगा एवं येस बैंक के ग्राहकों को बिल्कुल भी घबराने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हाँ, येस बैंक में घटित उक्त वर्णित घटनाक्रम के चलते भारतीय रिज़र्व बैंक को अपने निरीक्षण तंत्र को मज़बूत किए जाने की आवश्यकता ज़रूर उभर कर सामने आई है।

पिता की हत्या के बाद शिबू बने ‘गुरुजी’, भाई की मौत हेमंत को राजनीति में लाई

पिता की हत्या के बाद शिबू बने ‘गुरुजी’, भाई की मौत हेमंत को राजनीति में लाई

शिबू ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। इसके बाद साल 1980 में वह पहली बार लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए। 1980 के बाद शिबू ने 1989, 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीते।
ऐसा राज्य जिसको लेकर एक मुख्यमंत्री ने अपनी लाश पर होकर ही बनने का ऐलान किया था। एक ऐसी पार्टी जिसकी नींव ही उस प्रदेश के गठन के लिए रखी गई थी। एक ऐसा राज्य जिसने अपने गठन से लेकर आज तक देखें हैं 6 सीएम और तीन राष्ट्रपति शासन। एक पूर्व मुख्यमंत्री जिसने हारा था अपना पहला ही चुनाव। जंगलों की भूमि कहलाने वाला भारत का एक खूबसूरत राज्य झारखंड। जिसके नाम में ही इसकी पहचान छिपी है। झाड़ या झार जिसे हम वन भी कह सकते हैं और खंड यानी टुकड़े से मिलकर बने झारखंड को 2000 में दक्षिण बिहार से अलग कर बनाया गया था। भारत के पूर्वी राज्य में स्थित ये राज्य वनस्पतियों और जीव जंतुओं से समृद्ध है। यह राज्य उत्तर में बिहार, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, दक्षिण में ओडिशा और पू्र्व में बंगाल राज्य से घिरा हुआ है। लेकिन झारखंड राज्य के गठन के बाद से ही प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता रही है। 19 साल की उम्र वाले झारखंड ने अब तक 6 मुख्यमंत्री देख लिए हैं। तीन बार राष्ट्रपति शासन की वजह से सीएम की कुर्सी खाली रही।
1970 का वो दौर था, अलग झारखंड राज्य के मुद्दे पर जयपाल सिंह मुंडा अपनी नई राजनीतिक पार्टी का गठन करते हैं, झारखंड पार्टी। लेकिन बाद में इसका कांग्रेस में विलय हो गया। अगस्त 1972 की बात है। छोटा नागपुर के तीन बड़े नेता शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और ए.के. रॉय की मुलाकात होती है। मुलाकात के बाद एक पार्टी उभरकर सामने आती है। पार्टी का नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा रखा जाता है। शिबू सोरेन के बचपन में ही उनके पिता की महाजनों ने हत्या कर दी थी। इसके बाद शिबू सोरेन ने लकड़ी बेचने का काम शुरू कर दिया था। 1975 में गैर-आदिवासी लोगों को निकालने के लिए एक आंदोलन छेड़ दिया और इस दौरान 10 लोगों की मौत हो जाती है। तब शिबू सोरेन पर हिंसा भड़काने समेत कई आरोप लगे थे। इस घटना का असर करीब 30 साल बाद देखने को मिला जिसका जिक्र हम आगे विस्तार से करेंगे। पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले बिखराव की बात करते हैं। 1983-84 में झारखंड मुक्ति मोर्चा में पहला मतभेद हुआ और पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक गुट का नेतृत्व बिनोद बिहारी महतो तो दूसरे का निर्मल महतो कर रहे थे। 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद दोनों गुट फिर से एक साथ हो गए।
1992 का वो दौर था जब दक्षिण बिहार (वर्तमान झारखंड) में नए राज्य के गठन को लेकर आंदोलन चल रहा था। पटना से लेकर दिल्ली तक आंदोलनकारी धरना प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच शिबू सोरेन ने 11 जुलाई 1992 को तत्कालीन लालू प्रसाद की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। लालू प्रसाद से समर्थन वापसी के बाद झामुमो दो फाड़ हो गयी। झामुमो से अलग हुए झामुमो (मार्डी) गुट के दो सांसद एवं नौ विधायकों ने लालू यादव को समर्थन जारी रखा।
सितंबर 1992 का दौर झारखंड गठन के लिए एक महत्वपूर्ण दौर था। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को झारखंड आंदोलन को लेकर बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया था। इस बेहद अहम बातचीत से पहले ही लालू प्रसाद यादव ने बयान देते हुए कहा की ‘झारखंड उनकी लाश पर बनेगा’। इस बयान के साथ ही लालू यादव ने झारखंड गठन को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर दी। वार्ता की सुबह पूरे बिहार में इस बयान की ही चर्चा थी। अखबारों के पन्ने इस बयान और इसके बाद की प्रतिक्रियाओ से अटे पड़े थे।
इसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदलता चला गया। पुणे में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री शंकर राव चौहान ने वक्तव्य दिया कि झारखंड की समस्या का समाधान अलग राज्य से ही संभव है। इस बयान के चार दिनों बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का बयान आया कि अभी झारखंड राज्य गठन जैसी कोई बात उनके दिमाग में नहीं है। इसके कुछ दिनों के बाद झारखंड राज्य के मामले को आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय के पास भेज दिया गया, जिसके मंत्री राजेश पायलट थे। गृह विभाग से विषय को हटा को लिया गया। अब लगने लगा था कि झारखंड अलग राज्य नहीं बनेगा।
इसके बाद देश में सत्ता परिवर्तन होता है। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपना वादा भी निभाया। यह वादा था झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने का। (उन दिनों भाजपा के नेता झारखंड की जगह वनांचल कहते थे)। 11 सितंबर 1999 को रांची का बिरसा मैदान था और बीजेपी के दिग्गज नेता वाजपेयी ने विशाल जनसभा को संबोधित कर कहा था ‘हमारी सरकार ही वनांचल देगी, जब तक वनांचल नहीं बनेगा, न हम चैन से बैठेंगे और न बैठने देंगे। आप हमें सांसद दें, हम आपको वनांचल देंगे। वाजपेयी के वादे का असर दिखा था और 1999 के चुनाव में झारखंड में 14 में से 11 सीटों पर भाजपा के सांसद चुने गये। सरकार भाजपा की बनी और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। उसके बाद उन्होंने झारखंड राज्य बनाने के लिए जो वादा किया था, उसे पूरा किया। अगले साल ही झारखंड राज्य बन गया।
साल 2000 तारीख 15 नवंबर, यानी बिरसा मुंडा का जन्मदिन, आदिवासियों के देवता। उसी दिन झारखंड राज्य की नींव रखी गई। शिबू सोरेन को उम्मीद थी कि उनके नाम के आगे झारखंड के पहले चीफ़ मिनिस्टर का तमगा लगेगा। शिबू सोरेन रांची में शक्ति प्रदर्शन करते रह गए और कुर्सी पर भारतीय जनता पार्टी ने बाबूलाल मरांडी को बिठा दिया। हालांकि बाद में शिबू सोरेन तीन बार सीएम की कुर्सी पर पहुंचे। लेकिन कभी 6 महीने से ज्यादा सरकार चला नहीं पाए। पहली बार में उनकी सरकार 10 दिनों में ही गिर गई थी।
अब बात करते हैं 1975 के उस केस की जिसमें हिंसा भड़काने समेत कई आरोप शिबू सोरेन पर लगे थे। 30 साल पुराने केस में शिबू के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी हो जाता है। उस वक्त वो मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री थे और उन्हें अपने मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ता है। शुरुआत में वह अंडरग्राउंड हो गए थे लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। शिबू सोरेन को 1 महीने न्यायिक हिरासत में रहने के बाद जमानत मिल जाती है।
साल 2006 में 12 साल पुराने अपहरण और हत्या के केस में शिबू सोरेन को दोषी पाया जाता है। यह मामला उनके पूर्व सचिव शशिनाथ झा के अपहरण और हत्या का था। आरोप था कि शशिकांत का दिल्ली से अपहरण कर रांची में मर्डर किया गया था। इस मामले में दिल्ली की एक अदालत ने उनकी जमानत की याचिका को ठुकरा दिया था। 2007 में जब उन्हें झारखंड की दुमका जेल में ले जाया जा रहा था तो उनके काफिले पर बम से हमला हुआ था, लेकिन इस हमले में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ था। हालांकि, कुछ महीनों बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। इधर शिबू प्रदेश के साथ-साथ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे उधर उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में उनके बेटे दुर्गा सोरेन चुनावी मैदान में रण कौशल सीख रहे थे। दुर्गा को ही शिबू सोरेन का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन कुछ वर्षों पहले हुई उनकी मृत्यु ने उनके छोटे भाई हेमंत को राज्य की राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया। शिबू के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की पत्नी भी विधायक रहीं हैं और लगातार चुनाव लड़ती रहीं हैं। 39 साल के दुर्गा सोरेन 2009 में अपने बिस्तर में मृत अवस्था में मिले थे। वे उस वक्त विधायक के पद पर थे। हेमंत सोरेन उस वक्त राजनीति से कोसों दूर थे। पिता की खराब तबियत और भाई की अचानक मौत, हेमंत सोरेन को खाली जगह भरनी पड़ी। हेमंत के राजनीति में आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। उनकी मां उन्हें इंजीनियर बनाना चाहती थी। लेकिन किस्मत और हेमंत को कुछ और ही करना था। उन्होंने 12वीं तक ही पढ़ाई की और फिर इंजीनियरिंग में दाखिला तो लिया मगर बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। 2003 में उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हेमंत सोरेन 2009 में राज्यसभा के सदस्य चुने गए। बाद में उन्होंने दिसंबर 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में संथाल परगना की दुमका सीट से जीत हासिल की और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जब 2010 में भारतीय जनता पार्टी के अर्जुन मुंडा की सरकार बनी तो समर्थन के बदले हेमंत सोरेन को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालांकि जनवरी 2013 को झामुमो की समर्थन वापसी के चलते बीजेपी के नेतृत्व वाली अर्जुन मुंडा की गठबंधन सरकार गिरी थी। 13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन ने झारखंड के 9वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।
पिता की ही तरह पहले चुनाव में मिली थी हार
शिबू ने पहला लोकसभा चुनाव 1977 में लड़ा था, जिसमें उन्हें हार मिली थी। इसके बाद साल 1980 में वह पहली बार लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए। 1980 के बाद शिबू ने 1989, 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीते। 2002 में वह राज्यसभा में पहुंचे पर उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और दुमका से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
पिता की तरह हेमंत को भी अपने पहले चुनाव में हार का समान करना पड़ा था। चुनावी राजनीति में हेमंत का उदय 2005 में हुआ, जब उनके पिता शिबू सोरेन ने उन्हें दुमका सीट से चुनाव मैदान में उतारा। इस फैसले से पार्टी में विद्रोह के स्वर फूट पड़े और शिबू के काफी पुराने साथी स्टीफेन मरांडी ने जेएमएम छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गए। हेमंत को पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
4 जून 2009 से 10 जनवरी 2010 तक हेमंत राज्यसभा के सांसद रहे। 2009 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी, जनता दल यूनाइटेड और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने साथ में चुनाव लड़ा। बीजेपी और JMM को 18-18 सीटें मिलीं। JMM ने सीएम पद पर अपनी दावेदारी ठोक दी। 25 दिसंबर 2009 को शिबू सोरेन ने बीजेपी के समर्थन से सीएम पद की शपथ ले ली। मई 2010 में बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। अगस्त में BJP-JMM एक बार फिर से राज्य में सरकार बनाने पर राजी हुए लेकिन रोटेशन के आधार पर। सितंबर 2010 में बीजेपी के अर्जुन मुंडा ने सीएम पद की शपथ ली और हेमंत सोरेन ने डिप्टी-सीएम की। 3 जनवरी 2013 को अर्जुन मुंडा ने सोरेन को दो टूक जवाब दे दिया कि रोटेशन फॉर्मूले जैसा कोई समझौता हुआ ही नहीं हुआ। अब बारी हेमंत सोरेन की थी और उन्होंने जनवरी 2013 को बीजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। ठीक छह महीने बाद हेमंत सोरेन कांग्रेस के साथ ही एक और सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को साथ लेकर झारखंड के नौंवे सीएम के तौर पर शपथ लेते हैं। 2014 में झारखंड में चौथी विधानसभा के चुनाव हुए और इस बार सोरेन के सामने करिश्माई व्यक्तित्व वाले नरेद्र मोदी थे। झारखंड में बिना किसी चेहरे के पार्टी ने मोदी के नाम पर वोट मांगा और इस लहर में हर क्षेत्रिय क्षत्रप की तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा भी कुछ खास नहीं कर सकी। नतीजतन बीजेपी ने सरकार बनाई और रघुवर दास ने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाली पहली सरकार होने का गौरव भी प्राप्त किया।
लेकिन वक्त बीता और झारखंड में लड़ाई रघुवर दास बनाम हेमंत सोरेन तो प्रत्यक्ष तौर पर देखने को मिली, परोक्ष रूप से रघुवर दास बनाम अर्जुन मुंडा भी लड़ाई भीतर ही भीतर चलती रही। बीजेपी को अर्जुन मुंडा से जो फायदा मिल सकता था वो बिलकुल नहीं मिला। इसके साथ ही बीजेपी के ही बागी नेता सरयू राय के विरोध को भी रघुवर दास को फेस करना पड़ा। एक तरफ अपनों से घिरी बीजेपी सहयोगी आजसू को भी अपने साथ नहीं रख सकी दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद ने न सिर्फ महागठबंधन बनाया बल्कि सीएम पद को लेकर भी हेमंत के नाम पर आपसी सहमति दिखाई।

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