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विमर्श

मोटिवेशनल कोट्स: जो बदल दें आपके जीवन की दिशा और दशा

 

फौजिया नसीम शाद

 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे जीवन आ रहे उतार -चढ़ाव ,समस्याओं के समाधान के साथ हमारी सफलता को स्थापित करने में ,हमें हमारे जीवन में कुछ करने की प्रेरणा प्रदान करने व हमारे लक्ष्य प्राप्ति में मोटिवेशनल कोट्स जिन्हें हम हिंदी में उद्धरण के नाम से भी जानते हैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,ये मोटिवेशनल कोट्स हमारे अंदर उत्साह का संचार ही नहीं करते बल्कि ये हमें स्वयं पर विश्वास करना भी सिखाते हैं।

हमारे जीवन में हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने में और हमारा सर्वश्रेष्ठ देने में मोटिवेशनल कोट्स की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, उपरोक्त लेख में हम मोटिवेशनल कोट्स की उपयोगिता को समझने का प्रयास करेंगे —

जीवन के उतार- चढ़ाव और विपरीत परिस्थितियों में मोटिवेशनल कोट्स सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।

मोटिवेशनल कोट्स हताश और जीवन से निराश व्यक्ति में उर्जा,स्फूर्ति व उत्साह का संचार करते हैं।

किसी भी व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकालने मोटिवेशनल कोट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जाने कुछ ऐसे प्रेरणादायक उदाहरण-

मोटीवेशनल कोट्स हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

सफलता की उम्म्मीद पर विश्वास न करने वाले कभी जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ,सफलता के लिए सफलता पर विश्वास करना सीखिए।

स्वयं पर विश्वास करना सीखिए क्योकि स्वयं को निर्बल असहाय समझने वाले भी जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

जीवन में गलतियां करने से कभी न डरें ,सही मायने में गलतियां करके ही हम जीवन को ठीक ढंग से समझ पाते , मेरा लिखा अशआर भी यहां देखें- सीखने का हुनर नहीं आता, गलतियां हम अगर नहीं करते।

जो लोग स्वयं को नियंत्रित रखने में पूर्णत: सक्षम होते हैं उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता।

अपनी असफलता से कभी न घबराएं क्योंकि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है।

अपने परिश्रम पर विश्वास करने वाले जीवन में कभी असफलता का मुंह नहीं देखते।

स्वयं में सुधार के छोटे-छोटे प्रयास करते रहे ये आपके व्यक्तिव के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विपरीत परिस्थितियों से डर कर उनके समक्ष हाथ खड़े कर लेनाआपकी कायरता और आपका स्वयं पर विश्वास न होने की वास्तविकता को स्पष्ट करता है इससे बचे,हिम्मत और हौंसला रखें समय कैसा भी हो गुजऱ जाता है धैर्य के साथ विपरीत परिस्थियों से बाहर निकलने का प्रयास करते रहना चाहिए।

अपने प्रयासों में सफलता के लिए हर पल मोटिवेटेड रहें,आपके ऐसा करने से भी आपका लक्ष्य और आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त रहता है।

विषम परिस्थितियों से घबराकर हमारा उसके समक्ष हाथ खड़े कर देना, स्थिति को और भी गंभीर बनाता है

आधुनिक रेल की वास्तविकता

पंकज शर्मा तरुण
पंकज शर्मा तरुण

भारतीय रेल की वर्तमान तस्वीर कितनी बदली यह किसी से भी छुपा नहीं है। एक समय था जब पूरे देश में छोटी लाइन थी जिसे अंग्रेजों ने बिछाया था इसको मीटर गेज/नेरो गेज कहा जाता था।कोयले से चलने वाले काले रंग के इंजिन हुआ करते थे, जिसे भाप के इंजिन या स्टीम इंजिन कहते थे। जिन युवाओं ने यह नहीं देखे वे सनी देओल की फिल्म गदर टू देखेंगे तो उसमें इस को दिखाया गया है। ट्रेन की बोंगियां इतनी भारी और छोटी होती थी कि कोयले के इंजिन खींच नहीं पाते थे।बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव होता था।समय बदलता गया मीटर गेज परिवर्तन किया गया। ब्रॉड गेज रेल लाइन बिछने लगी डीजल के इंजिन आए, डबल लाइन बिछाई गई, बिजली के इंजिन आए, बिजली की लाइन बिछाई गई। बोंगियोंं को आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस किया गया, सीटों को आरामदायक बनाया गया।प्लेट फार्म हवाई अड्डे की तरह सर्व सुविधायुक्त बनने लगे।भारतीय रेल आज विश्व स्तर पर अपनी गाथा स्वयं लिख रही है।वंदे भारत, डेमो, मेमो, मेट्रो जैसे अनेक विकल्प आ गए ट्रेनों की गति बढ़ती जा रही है।

 

मगर यहां एक चूक भी हो रही है जिसका जिक्र करना भी अनिवार्य है। मैं पिछले दिनों एक तीर्थ यात्रा पर चलने वाली विशेष ट्रेन से रामेश्वरम गया था, जो इंदौर से शुरू हुई थी। इसमें लगभग एक हजार तीर्थ यात्री थे। आई आर सी टी सी के द्वारा इस यात्रा का संचालन किया जा रहा था ऐसी ट्रेनें बारहों मास चलाई जाती हैं। जिसमें सुबह की चाय नाश्ते से लेकर पेयजल की भी व्यवस्था होती है।साथ ही दोनों समय भोजन की व्यवस्था होती है।यात्रियों को जो भोजन परोसा जाता है उसकी गुणवत्ता की जांच की जाए तो निश्चित रूप से कह सकते हैं कि यह खाना इंसानों के खाने लायक तो नहीं होता! इसी प्रकार आप यदि प्रतिदिन या साप्ताहिक ट्रेनों में यात्रा करते हैं तब भी पेंट्री से खाना मंगवाते हैं तो मेरे खयाल से दूसरी बार कभी नहीं मंगवाएंगे! रोटियां जो दी जाती हैं उन्हें रोटियां या चपाती कहना रोटियों का मजाक उड़ाना या स्वयं का पूरी तरह अंधे होना कहा जा सकता है।

 

यदि जानवर को वह रोटी डाली जाए तो वह उसे कभी नहीं खाएगा।ऐसा प्रतीत होता है कि जो ठेकेदार यह खाना परोसते हैं उन्हें रोटी की या तो पहचान नहीं है या सब चलता है की सोच से यह कथित रोटी या चपाती परोसी जाती है।जिसे ठीक से सेंक कर नहीं दी जाती। कच्ची कागज़ की तरह बनी होती हैं। मैं तो माननीय रेल मंत्री जी को सुझाव दूंगा कि एक बार आम आदमी बनकर ट्रेन में यात्रा करें और खाना ऑर्डर कर खाएं तो आप को भी इनकी वास्तविकता से परिचय हो जाएगा। अब आते हैं हवाई अड्डे जैसे प्लेटफार्म पर ! केंटीन पर रेट लिस्ट लगी है, जिसमें चाय की मात्रा और कीमत लिखी है और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतें भी लिखी हैं चाय की कीमत सात रुपए लिखा है मगर दस रुपए से कम में भारत के किसी भी स्टेशन पर नहीं मिलती साथ ही चाय की गुणवत्ता इतनी घटिया होती है कि उसको पीने के बाद आदमी कसम खा लेता है कि इन आधुनिक प्लेट फार्म पर कभी चाय नहीं पियेगा!

 

आजकल वेफर्स बनाने वाली कंपनियों ने भी एक नई चाल पकड़ी है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे! रेलवे के केंटीन के लिए अलग से पेकिंग की जा रही है जिसकी मात्रा तो कम होगी ही कीमतें भी आम बाजार से अलग होती हैं।रेल नीर की बोतल पंद्रह रुपए में बिक्री करना है मगर केंटीन वाले सीधे बीस रुपए वसूल कर रहे हैं। बिसलरी के नाम पर स्थानीय नकली मिलते जुलते नामों की बोतल उसी कीमत पर बेची जा रही है इस ओर किसी भी रेल अधिकारी का ध्यान नहीं जाता या ध्यान नहीं देना चाहते? प्लेटफार्म पर लगे पेयजल के नल या तो बंद रखे जाते हैं या उनमें गंदा पानी दिया जाता है ताकि यात्री बोतल बंद पानी खरीदने को बाध्य हो जाए।मेरे जैसे अनेक लोग हैं जो सादा पानी ही पीते हैं बोतल का नहीं उनके लिए तो यह अभिशाप ही होता है। रेलवे के संबंधित अधिकारी इन जीवनदायिनी आवश्यकताओं के बिगड़े स्वरूप को सुधारने की ओर ध्यान दे ताकि लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ को रोका जा सके तथा जेबों को हल्का होने से बचाया जा सके।

विनायक फीचर्स

क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च अंक की गारंटी दे सकती है?

क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च अंक की गारंटी दे सकती है?

 

विजय गर्ग

 

सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षा बनाम जेईई मेन: क्या जेईई की तैयारी 12वीं कक्षा में उच्च स्कोर की गारंटी दे सकती है?

 

 

संयुक्त प्रवेश परीक्षा (मुख्य) की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को अक्सर चुनौतीपूर्ण सवाल का सामना करना पड़ता है कि क्या जेईई मेन के लिए उनकी तैयारी के परिणामस्वरूप सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड कक्षा 12 बोर्ड परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन हो सकता है। आमतौर पर, जेईई मेन सत्र 1 सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा शुरू होने से 2-3 सप्ताह पहले होता है।

 

कई महत्वाकांक्षी इंजीनियर और आम जनता आमतौर पर मानते हैं कि जेईई मेन की तैयारी विज्ञान स्ट्रीम के लिए सीबीएसई/आईसीएसई/स्टेट 12वीं बोर्ड परीक्षा के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। हालाँकि, यह निर्धारित करना कि क्या जेईई की तैयारी कक्षा 12 सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड परीक्षा में उच्च अंक सुनिश्चित कर सकती है, एक जटिल प्रश्न है जिसका कोई सरल उत्तर नहीं है। परिणाम विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है:

 

सिलेबस में समानता

जेईई मेन और सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई कक्षा 12 दोनों में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित के विषय कई सामान्य विषयों को साझा करते हैं। इसका मतलब यह है कि यदि आप जेईई की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप स्वचालित रूप से सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई पाठ्यक्रम का एक अच्छा हिस्सा पढ़ लेंगे। हालाँकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि जेईई मेन विशिष्ट अवधारणाओं पर अधिक विस्तार से बताता है और इसमें अतिरिक्त विषय भी शामिल हैं जो सीबीएसई/राज्य पाठ्यक्रम में नहीं पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड अंग्रेजी, हिंदी और अन्य ऐच्छिक जैसे विषयों को कवर करते हैं, जो जेईई के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।

 

सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड स्कोर पर जेईई तैयारी का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव: जेईई के लिए अच्छी तैयारी करने से निश्चित रूप से भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित की आपकी समझ में वृद्धि हो सकती है, जिससे संभवतः आपके सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड के दौरान इन विषयों में बेहतर स्कोर प्राप्त होंगे। जेईई की तैयारी में नियोजित व्यावहारिक दृष्टिकोण आपके समस्या-समाधान कौशल को भी मजबूत कर सकता है, जो सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षाओं के लिए फायदेमंद है।

 

नकारात्मक प्रभाव: हालाँकि, केवल जेईई की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने से आपके सीबीएसई/आईसीएसई बोर्ड में अन्य विषयों की उपेक्षा हो सकती है, जिससे संभावित रूप से आपके समग्र स्कोर पर असर पड़ सकता है। साथ ही, जेईई की तैयारी की तेज़ गति और प्रतिस्पर्धी प्रकृति सीबीएसई/आईसीएसई/राज्य बोर्ड परीक्षाओं के व्यापक संदर्भ के अनुरूप नहीं हो सकती है।

 

 

विचार करने योग्य कारक

व्यक्तिगत सीखने की शैली: कुछ छात्र तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी स्थितियों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, जबकि अन्य अधिक संरचित और संतुलित दृष्टिकोण पसंद करते हैं। सीखने की शैलियों में विविधता इस बात पर प्रभाव डाल सकती है कि संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्ड) के अंकों के साथ कितनी प्रभावी ढंग से संरेखित होती है।

 

परीक्षा रणनीति: जब संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की बात आती है, तो अपने ज्ञान को शीघ्रता से लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। इसके विपरीत, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई) बोर्ड परीक्षाओं के लिए सभी विषयों पर गहरी पकड़ और अपने समय को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।

समय प्रबंधन: दोनों परीक्षाओं के लिए तैयारी करते समय अपने समय का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक विषय के लिए अपना समय उचित रूप से आवंटित करना, उनके महत्व को ध्यान में रखना और अपनी व्यक्तिगत शक्तियों और कमजोरियों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।

 

जेईई की तैयारी आपको अपने सीबीएसई/राज्य/आईसीएसई बोर्डों में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में अच्छा स्कोर करने के लिए एक मजबूत आधार बनाने में मदद कर सकती है। हालाँकि, यह सफलता का कोई गारंटीकृत मार्ग नहीं है। केवल जेईई पर ध्यान केंद्रित करने से आप अन्य विषयों की उपेक्षा कर सकते हैं और यह हर किसी के लिए सबसे अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है।

Ghaziabad Name Change:गाजियाबाद जिले का नाम अब बदला जायेगा क्या हो सकता है नाम आइये जानते है

Ghaziabad Name Change:गाजियाबाद जिले का नाम अब बदला जायेगा क्या हो सकता है नाम आइये जानते है

Ghaziabad Name Change गाजियाबाद का नाम बदलने का प्रस्ताव मंगलवार को सदन के समक्ष पेश किया गया मेयर ने कहा कि DISTIC का नाम बदलने का फैसलाको शासन लेना है नया नाम भी शासन ही तय करेगा । प्रस्ताव पास होते ही सदन में भारत माता की जय के नारे लगने लगे । नगरप्रमुख सुनीता दयाल ने बताया कि जल्द ही इस proposal को शासन को भेज दिया जाएगा।

News summary

  1. राजा गाजीउद्दीन की याद दिलाने के लिए रखा गया था नाम
    • 1
      • मुग़ल शासक गाज़ीउद्दीन के नाम पर रखे जाने वाले जिले को इसके ऐतिहासिक जड़ों को बचाने या एक नए पहचान को अपनाने पर विचार किया जा रहा है।
  2. मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने गाजियाबाद को मेरठ से किया था अलग

14 नवंबर 1976 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने गाजियाबाद को मेरठ से अलग कर जिला घोषित किया, लेकिन नाम नहीं बदला था |

  1. “नाम बदलने का प्रस्ताव निगम से पास
    • प्रस्ताव पास होते ही सदन में भारत माता की जय के नारे लगने लगे । नगरप्रमुख सुनीता दयाल ने बताया कि जल्द ही इस proposal को शासन को भेज दिया जाएगा।
  2. “पहचान का परिवर्तन: गाजियाबाद नए युग का आगाज़”
    • गाजियाबाद के नाम बदलने के प्रस्ताव के साथ, शहर एक संभावित परिवर्तन का सामना कर रहा है, जो इसके ऐतिहासिक मूलों और भविष्य की पहचान पर विचार कर रहा है।

(more…)

दूसरे देशों मे दी जाने वाली सज़ा पर जरा गौर फरमाए- लव जिहाद 

दूसरे देशों मे दी जाने वाली सज़ा पर जरा गौर फरमाए- लव जिहाद 

वीना आडवाणी तन्वीनागपुर, महाराष्ट्र
वीना आडवाणी तन्वी नागपुर, महाराष्ट्र
आज बहुत ही गहरी सोच मे डूबी थी और मैं यही सोच रही थी कि आखिर, क्या कारण है कि हमें कभी भी विदेशों से बलात्कार, लड़कियों की हत्या बलात्कार के बाद, क्यों इस प्रकार की खबर सुनने को नहीं मिलती है कि फलाने देश में लड़कियों का बलात्कार हुआ या लड़की का बलात्कार करने के बाद बहुत ही बुरी तरीके से सरेआम कत्ल कर दिया गया। बलात्कार के लिए लड़कियों का कहीं पर भी अपहरण किया गया। लड़कियों ने शादी करने से मना कर दिया हो तो उन्हें सरेआम रास्ते पर मार देना इस तरह की खबर भी हमने कभी नहीं सुनी, चलती बस में लड़की का बलात्कार कर कर निर्भया हत्याकांड जैसी खबर तो केवल भारत देश में ही सुनने को मिली सरे राह पर पेट्रोल जलाकर एक पशु चिकित्सक जो कि महिला थी उसको भी जला दिया गया आखिर क्यों? सिर्फ आतंकी क्षेत्रों को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों से इस तरह की या यह कहें कि दूसरे देशों से इस तरह की खबर नहीं आती उदाहरण के तौर पर चीन जापान सिंगापुर आदि ऐसे कई प्रतिष्ठित देश है जहां से इस तरह की खबर नहीं आती।
यदि वर्ष 2022 से देखा जाए तो 2023 के आते आते ही न जाने कितनी बेटियां बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दी गई। और फिर इस तरह के जघन्य हत्याकांड को नाम दे दिया गया लव जिहाद। जब इस तरह के हत्याकांड हुए तो दोष हिंदू बेटियों को दिया गया कि वह छोटे-छोटे तंग कपड़े पहनती हैं खुले विचारों की है देर रात तक घूमती हैं वगैरह-वगैरह। जबकि इसके विपरीत है देखा जाए तो विदेश में रहने वाली महिलाएं भारतीय महिलाओं से भी अधिक खुले विचारों की है। देर रात तक पबों में जाना, शराब पीना, छोटे-छोटे बहुत ही ज्यादा तंग कपड़े पहनना, देर रात तक सड़कों पर घूमना इत्यादि पर अगर हम गौर फरमाए तो भारतीयों से अधिक तो विदेश में रहने वाली महिलाएं आजाद हैं या यह कहें कि खुले विचारों वाली है तो वहां महिलाएं इतनी बेफिक्र होकर कैसे घूम सकती हैं। हमारे भारत देश में चलिए पूरी तरह नहीं मानते हैं परंतु 60% महिलाएं आज भी भारतीय परंपराओं को अपनाते हुए अपने तन को ढक कर रखती है। उसके बावजूद भी भारत देश में इस तरह के जघन्य अपराध होते हैं विदेशी महिलाओं के साथ इस तरह के जघन्य अपराध क्यों नहीं होते हैं। जानते हैं इसके पीछे बहुत बड़ा कारण है। उसका कारण है हमारे देश की न्याय प्रक्रिया में कमी हमारे देश मे बलात्कार के अपराधी को सजा देने में कमी।
आज मैं इसी खोज में गूगल पर सर्च करने लगी कि हर देश में बलात्कारी के लिए क्या सजा तय की गई है। सबसे अधिक जो सजा मैंने इस्लाम धर्म में पाई है, वह यह है कि यदि कोई इस्लाम धर्म का किसी महिला के साथ बलात्कार करता है तो उसके गुप्तांग को ही काट दिया जाता है या क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है ताकि वह जिंदगी भर किसी के भी काबिल ना रहे और इस तरह का जघन्य अपराध ना कर सके।
जब मैंने चीन देश के बलात्कार के संबंध में दी जाने वाली सजा को पढ़ा तो चौंकाने वाला तथ्य सामने यहां आया कि बलात्कारी को फांसी की सजा दी जाती है साथ ही उसके गुप्ता को भी क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है।
मिस्र देश में भी सरेआम दुनिया के सामने गोली मार दी जाती है और गुप्तांग को क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है।
इस्लाम धर्म में बलात्कार के बदले में दी जाने वाली सजा को सुनकर कोई भी बलात्कार करने से पहले लड़का दस बार सोचता है। उसकी रूह सोच कर ही कांप उठती है कि मैं बलात्कार कैसे कर सकता हूं यदि मैंने अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए बलात्कार किया तो मेरा गुप्तांग ही काट दिया जाएगा। जिसके डर से वह ऐसा अपराध कर ही नहीं पाता है।
हमारे हिंदू समुदाय में ऐसी कोई भी सजा तय नहीं की गई है खास करके भारत देश में जिसके कारण अपराधियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि इस्लाम धर्म के लड़के अपना नाम बदलकर लड़कियों को अपने जाल में फंसा रहे हैं और उनके साथ बलात्कार कर उन्हें बहुत ही बुरी तरीके से मार रहे हैं और नाम दे रहे हैं लव जिहाद जानते हैं इसका कारण क्या है इसका कारण है हारमोंस, आज की नव युवा पीढ़ी मे हर किसी को अपनी एक गर्ल्फ्रेंड चाहिए। सभी को पता है कि इस्लाम धर्म में यदि उन्होंने अपने ही धर्म की किसी लड़की को फसाया और उसके साथ कोई ऐसा अपराध किया तो उनके गुप्तांग को काट दिया जाएगा या उन्हें फांसी की सजा दी जाएगी। इसलिए अब क्यों वह अपने ही धर्म की लड़कियों को नहीं फंसाते। इस विषय पर गहराई से सोच कर देखिए गा और मेरी तरह आप भी गूगल पर एक बार सर्च करिएगा कि विभिन्न देशों में बलात्कार की सजा क्या है और हमारे भारत देश में बलात्कार की सजा क्या है जमीन आसमान का अंतर पाएंगे दूसरी कमी हमारे देश में मिलने वाले न्याय की प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चलती है जबकि दूसरे देशों में न्याय प्रक्रिया बहुत ही तेजी से चलती है जिसके चलते वहां पर बहुत सारे केस सालों साल तक नहीं चलते।
जैसा कि मैंने आपको बताया था की बलात्कार का कारण हारमोंस है, जी हां जैसे-जैसे नव युवकों की उम्र बढ़ती जाती है उनके शरीर में हारमोंस बदलते रहते हैं इसी हारमोंस के बदलने के कारण लड़कों का या लड़कियों का विपरीत लिंग की तरफ आकर्षित होना स्वभाविक है। इसे तो कोई भी नहीं बदल सकता बस यह है कि हिंदुओं में बलात्कार के लिए कोई कड़ा नियम ना होने के कारण आए दिन कभी श्रद्धा, कभी साक्षी, तो कभी कोई ओर इस बलात्कार की सूली पर चढ़ती ही रहेंगी हिंदु बेटियां और ऐसे ही हिंदू लड़कियों की हत्याएं होती भी रहेंगी। इस्लाम धर्म की लड़कियों के साथ ऐसा इसलिए नहीं होता है क्योंकि इस्लाम धर्म के अंतर्गत हर कोई जानता है कि यदि हमने इस तरह का अपराध किया तो हमारे या तो गुप्तांग काट दिए जाएंगे या तो हमें फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया जाएगा या तो हमें ऐसा बना दिया जाएगा की हम ताउम्र अपनी औलाद के लिए तरसते रहें मतलब नपुंसक।
अब आप सोचिएगा, हार्मोन्स का बदलना या उसे रोकना हमारे हाथ में नही है। परंतु हिंदु धर्म मे भी बलात्कार के लिए कड़ी सज़ा को लाना बहुत ही जरूरी है। ताकी फिर कोई भी, किसी भी धर्म का लड़का हिंदू बेटियों को छूने से पहले कतराए और ना हो फिर से कोई भी कहीं भी बेटी लव जिहाद का शिकार।
फिर आप ही सभी देखियेगा दूसरे धर्म कि बेटियों बेटों की तरह भी हिंदु धर्म की बेटी बेटों की तरफ कोई भी आंख उठाकर नहीं देखेगा। देखने से पहले वो दी जाने वाले क्रूरता से भरी दी जाने वाली सजा के बारे में सोचेगा। जिस तरह एक इस्लाम धर्म का लड़का अपने ही धर्म की लड़कियों की ओर सजा के डर से नज़र उठा के नहीं देखता ठीक उसी तरह हमारे हिंदुओं में भी ऐसी ही सजा दी जाए की कोई भी धर्म का लड़का हिंदु न्याय प्रक्रिया की ओर पहले ध्यान दे और उसकी रूह कांप उठे किसी अपराध मतलब बलात्कार को करने से पहले।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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पुलिस पब्लिक जनसभा का किया गया आयोजन

पुलिस पब्लिक जनसभा का किया गया आयोजन

खबरों की तह तक

देवघर।  देवीपुर थानांतर्गत मानपुर पंचयात के ग्राम कारीकादो में पुलिस पब्लिक जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमे स्थानीय मुखिया, पंचयात समिति, वार्ड सदस्य एवं काफ़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण उपस्थित हुए । पुलिस पब्लिक जनसभा के दौरान पुलिस पदाधिकारियों द्वारा जानकारी दी कि पुलिस पब्लिक के बीच पहले से अच्छे संबंध बने हुए है, लेकिन उस मधुर संबंध को और बेहतर करना कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।

 

 

 

 

साथ ही ग्रामीणों को वर्तमान में बढ़ते अपराध के प्रति जागरूक करते हुए जानकारी दी गई कि पुलिस और आम जनता के बीच बेहतर समन्वय से ही अपराधों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। ऐसे में आवश्यक है कि सकारात्मक दृष्टिकोण एक दूसरे का सहयोग करते हुए अपराध मुक्त समाज का निर्माण किया जा सके ।

नगरी उत्क्रमित उच्च विद्यालय प्रांगण में प्रबंधन समिति का अध्यक्ष एवं सदस्यों को दो दिवसीय प्रशिक्षण प्रारंभ

नगरी उत्क्रमित उच्च विद्यालय प्रांगण में प्रबंधन समिति का अध्यक्ष एवं सदस्यों को दो दिवसीय प्रशिक्षण प्रारंभ

खबरों की तह तक 

कुण्डहित (जामताड़ा)। प्रखंड क्षेत्र के उत्क्रमित उच्च विद्यालय नगरी मे विद्यालय प्रबंधन समिति का अध्यक्ष एवं सदस्यों को दो-तीन से प्रशिक्षण का प्रारंभ मंगलवार को किया गया।

 

 

प्रशिक्षण सीआरपी प्रदीप चक्रवर्ती के द्वारा दिया गया,प्रशिक्षण में विद्यालय के रखरखाव एवं समिति का उन्मुखीकरण आदि विषय पर चर्चा की गई एवं वीडियो के माध्यम से विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की गई,मौके पर समिति के अध्यक्ष रंजीत मिर्धा ,संयोजिका तथा विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य गण , बाल सांसद के सदस्य गण विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक अनिल मुर्मू तथा सहायक शिक्षक वृन्द उपस्थित थे।

बिहार का नायाब सितारा है रिच माइंड्स कम्पनी के निदेशक निशिकांत सिन्हा

बिहार का नायाब सितारा है रिच माइंड्स कम्पनी के निदेशक निशिकांत सिन्हा

  • जुनून और जज्बे से हासिल की आर्थिक आजादी
  • युवाओं के लिये आइकॉन है निशिकांत

-भवेश कुमार मंडल
कालांतर से ही बिहार का नाम विश्व के मानचित्र पर स्थापित है पूरे विश्व को शांति का संदेश देने वाले भगवान वुद्ध की ज्ञान भूमि मगध की धरती गया इसका जीवंत दस्तावेज है। मगध की धरती अपने आगोश में कई ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर को छुपाए हुए है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मगध कालांतर में प्रकृति और कुदरत का अनोखा उपहार यहां की गौरवशाली इतिहास का साक्षी है। प्रकृति का अनमोल धरोहर ककोलत की मनोरम वादियों से गूंजती कोयल की कुंक और कौआकोल का बोलता पहाड़ का रहस्य और रोमांच तिलिस्म से रूबरू कराती है।मगध क्षेत्र के अंतर्गत नवादा जिला के ऐतिहासिक पन्नों को टटोलने से ज्ञात होता है कि देश की आजादी से लेकर किसान आंदोलन एवं जेपी आंदोलन की कर्मभूमि भी नवादा रही है। जिले के विभिन्न प्रखंडो में स्थित ऐतिहासिक धरोहर वहाँ प्रमाणिक जीवंत दस्तावेज है। नवादा जिले में प्रतिभा के साथ साथ भिन्न भिन्न क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त करने वाले बहुतेरे लोग हैं। जो अपनी प्रतिभा के बल पर देश दुनिया मे अपने गावँ समाज और राज्य का नाम रौशन किया है। हम बात वैसे शख्शियत की करने जा रहे है।ं जो नवादा जिले के सबसे छोटे प्रखण्ड काशीचक के छोटे से गावँ की पगडंडियों से कुलांचे भरते हुए अपनी देश की राजधानी दिल्ली से अपने व्यक्तित्व और प्रतिभा के बदौलत कैरियर की शरुआत करते हुए देश के कई महानगरों में व्यवसायिक यात्रा के साथ अपने आप को शीर्ष पर स्थापित करने का अकल्पनीय प्रयास किया है। गांव की गलियों से निकल कर महानगरों की चकाचौन्ध में भी अपनी पैठ देश के विभिन्न प्रान्तों में प्रशासनिक सेवा से जुड़े हजारों अधिकारियों के साथ जुड़कर अपनी अलग पहचान बनाई है। यहां तक कि कई फिल्मी हस्तियाँ एवं फिल्म निमार्ताओं के साथ घरेलू सबंन्ध स्थापित कर यह साबित कर दिया कि प्रतिभा केवल महानगरों और शहरो की संकीर्ण तंग गलियारों से ही नही निकलती है बिहार के गांवों में भी प्रतिभा छुपी हुई है। आज बिहारी कहलाने में कोई झिझक महसूस नही करते हैं बल्कि गर्व से कह सकते हैं कि हम बिहारी हैं हम वैसे बिहार की धरती से आते है। जहां भगवान बुद्ध जैसे शांति के अग्रदूत और चन्द्रगुप्त, अशोक सम्राट जैसे चक्रवर्ती राजा के प्रजा रह चुके हैं। हम वैसे बिहार से हैं जहां आर्यभट्ट जैसे वैज्ञानिक ने जन्म लिया है, जहां चाणक्य जैसे रणनीतिकार और अंसख्य क्रांतिवीर शहीद हुए हैं। 80 बर्ष के बिहारियों में भी जब देश प्रेम जागती है तो वह वीर कुंवर सिंह बन जाता है। वैसे ही मगध क्षेत्र के काशीचक प्रखण्ड के रेवरा गावँ से जमींदारों के खिलाफ किसान आंदोलन की शुरूआत स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने किया था।काशीचक के ही भट्टा गावँ के दो दशक से ज्यादा मुखिया एवं प्रमुख रहे बिंदा बाबू के सुपौत्र एवं चिकित्सा सेवा से जुड़े शशिकांत सिन्हा उर्फ महेंद्र प्रसादके पुत्र निशिकांत सिन्हा ने आज देश के कई महानगरों को अपना कार्यक्षेत्र बनाते हुए करोड़ो का टर्नओवर के साथ देश के शीर्ष कम्पनियों के साथ खड़ी है। काशीचक सियासत और समय की कई धाराओं से गुजरते हुए यह स्टेशन इलाके के इतिहास की हर धड़कन का साक्षी रहा है। शहरीकरण को अपने अक्श में जज्ब करती स्टेशन की नई बिल्डिंग बदलाव की नई इबारत लिख रही है। नई-नई रेलगाड़ियों के परिचालन, दोहरीकरण विधुतीकरण इस बदलाव का सूत्रपात है। हालांकि दो दशक पूर्व यह इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गुंजा करता था।वर्चस्व की लड़ाई के लिए प्रसिद्ध यह इलाका एक दशक तक नरसंहार के लिये प्रसिद्ध रहा।परन्तु बाधाओं को दरकिनार कर अपनी हैसियत अपने बलबुते करने बाले रिच माइंड्स कम्पनी के चेयरमैन निशिकांत सिन्हा वास्तव में युवाओं के लिये आइकॉन हैं। खासकर समाज के प्रति इनकी भावना उदारता और समर्पण इनकी दरियादिली की पहचान खुद व खुद देती है।


वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान नवादा में तीव्र गति से बढ़ रहे संक्रमण के कारण आमलोगों की समस्याओं से रूबरू होते हुए नवादा डीएम यशपाल मीणा से सम्पर्क साधकर पॉच लाख रुपए मदद करने की पेशकश किया। निशिकांत ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना के दुसरे लहर के दौरान नवादा जिले में भी कोरोना संक्रमण की स्थिति भयावह थी जिलाधिकारी यशपाल मीणा से जिलेवासियों की जीवन रक्षा के लिये मास्क और आक्सीमीटर की कमी को देखेते हुये निशिकांत सिन्हा ने सहयोग किया। निशिकांत की पत्नी सह रिच मांइडस कम्पनी के डायरेक्टर रितु सिन्हा ने पुरी दरियादिली दिखाते हुये पॉच लाख रुपएं का सहयोग किया। इस संदर्भ में निशिकांत ने कहा कि मानवीय मुल्यों की रक्षा करना भी एक धर्म है। और आर्थिक रूप से सक्षम लोगों को अपने धर्म की रक्षा करने की जरूरत है। नवादा जिला तो मेरा जन्मभूमि हैं नवादा की सोंधी मिट्टी की खुश्वू ने हमें नवादा वासियों को मदद करने का सौभाग्य दिया है। हम अपने जन्मभूमि के ़ऋणी है। सामाजिक कार्यो में हमेशा बढ़चढ़ कर भाग लेने वाले निशिकांत आज परिचय के मोहताज नही है। जिले में उन्होनें अपनी भलमानसता का परिचय देते हुये अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। और संकट के समय नवादा वासियों के साथ हमेशा खड़ा रहने की भी बात कही है।
रितु सिन्हा रीच माइंड्स कम्पनी की चेयरपर्सन के साथ शोसल वर्क में एक्टिव है।इनकी संस्था कई संस्थाओं के द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक सरोकार से जुड़ी गतिविधियों में भी सहयोग करती है। रितु सिन्हा ने बिहार में शोशल चेंज की स्थिति पर अपनी राय प्रकट करते हुए कहा कि यह धीरे धीरे होता है।बिहार की विभिन्न सामाजिक आर्थिक समस्याओं को हम तभी समझ सकते हैं जब तक हम उसकी जड़ तक नही पहुंचेगे। बिहार में प्रतिभाओं की कमी नही है।लोगों में पहले की अपेक्षा अवेयरनेस आया है।समाज मे आर्थिक बदलाव लाने के लिए हर व्यक्ति को सकारात्मक सोच के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।
निशिकांत सिन्हा के द्वारा अपनी सफलता को लेकर हमारे संवाददाता के साथ किये गए लंबी बातचीत पर आधारित यह सफलताओं की अंतहीन कहानी उन्ही की जुबानी।
नवादा जिले के काशीचक प्रखंड का भट्टा गॉव की सोंधी मिट्टी में पले बढ़े निशिकांत की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से बिहारशरीफ एवं नवादा स्थित ज्ञान भारती स्कूल से शुरू होकर देश की राजधानी जा कर खत्म हो गयी। लेकिन बचपन से आत्मविश्वास से लबरेज श्री सिन्हा ने शिक्षा तो हासिल जरूर किया परन्तु अपने लक्ष्य को भेदने के लिये कई शस्त्र का प्रयोग कठिन संघर्षो की बीच किया। अन्तत: उन्हें बहुत मशक्कत के बाद सफलता मिली। बचपन से ही पढ़ने में मेघावी निशिकांत चंडीनामा हाई स्कूल में अध्ययन करते हुये वर्ष 1999 में अच्छें अंकों के साथ बिहार विधालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित वार्षिक माध्यमिक परीक्षा उर्तीण किया।निशिकांत के पिता इन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। उन्होंने मेडिकल की तैयारी के लिये निशिकांत को दो बर्ष तक पटना में अच्छे कोचिंग से तैयारी कराया। जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज में इंटर का नामांकन भी कराया।दो बर्ष तक पटना में रहकर तैयारी किया परन्तु सीबीएसई द्वारा आयोजित परीक्षा में बेहतर रैंक नही मिलने के कारण इन्हें दंत चिकित्सा की पढ़ाई के लिये चुना गया। परन्तु निशिकांत का मन दंत चिकित्सा में नही जाने का था। इसलिये इन्होनें दिल्ली जाकर नोएडा में बायोटेक से बीएससी करने के साथ संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने लगे। निशिकांत अपने कैरियर को अच्छे अधिकारी के रूप में स्थापित करना चाहते थे या स्वतंत्र व्यापार करने का लक्ष्य रखा था। चुंकि स्कूली जीवन मनुष्य की जीवन यात्रा के उत्थान पतन का निर्णायक झण होता है। जीवन के प्रति गहरी समझ नही होते हुये भी यह कालखंड कालांतर में आने वाली हर बाधाओं और प्रतिकुलताओं से मुकाबला करने में हमे मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करता है।भविष्य के प्रति हमारी सोच की रूपरेखा का महत्वपूर्ण समय यही होता है। यही कारण है कि देश और दुनिया के तमाम नामचीन विश्वविधालयों से डिग्रियां लेने और सरकारी गैर सरकारी उघमों में शीर्ष स्थिति प्राप्त करने की लालसा हमारे मानस पटल पर हमेशा हमें उत्साहित करती है। कहा भी गया है। जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। उसे गुमां है मेरी उड़ान कम है।

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मुझे यकीं है कि ये आसमान कम है जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है। जिंदगी के असली इम्तहान अभी बाकी है। अभी तो नापी है मुठी भर जमीं हमने। अभी तो सारा आसमान बाकी है।
इन उक्तियों को चरितार्थ करने के साथ शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी का सपना बुनना और सपनों को उड़ान देने के लिये सही समय पर हौसलों को बुलंदी के रास्ते पर ले जाने के बाद ही बुने हुये सपने पुरे होते है। लेकिन सपने को साकार करने के लिये ईमानदारी पूर्वक मेहनत करने के लिये अपनी सारी शक्ति को लगाने के लिये पुरी तैयारी भी करनी होती है। निशिकांत को दिल्ली में पढ़ाई के दौरान कई लोगों से भेंट मुलाकात हुई घर में सारे परिवार का पता था कि निशिकांत मेडिकल की तैयारी कर रहा था। परन्तु एमबीबीएस में नामांकन नही होने के बाद स्वतंत्र होकर कोई अन्य कार्य में अपना कैरियर को बनाने का सपना बुनने में व्यस्त निशिकांत अपने सपनों को उड़ान देने के लिये देश की राजधानी में खाक छानना प्रारंभ कर दिया।दिल्ली में निशिकांत ने काफी संघर्ष किया। कई बार तो फांकेकसी और खानाबदोश जैसी जिंदगी भी जीने को मजबूर हुए परन्तु हार नही मानी। सपनों को पूरा करने का एक मात्र लक्ष्य के साथ राजनैतिक गलियारों से लेकर अपनी पैठ अधिकारियों तक बनाते हुये सामाजिक सरोकार से भी जुड़ गये। परन्तु पिता के सपनों को पुरा नही करने का मलाल भी हृदय में सालता रहा। पिता अपने पुत्र पर काफी भरोसा करते थे। पिता को यह ज्ञात था मेरे पुत्र का स्वर्णिम भविष्य इसकी बाट जोह रहा है। पिता शशिकांत भी अपने गॉव में सामाजिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर सामाजिक सरोकार से जुड़कर हमेशा गरीबों की आर्थिक मदद भी करते रहते थे। पिता के आदर्शों पर चलने वाले निशिकांत ने भी अपने दिल मे भी सामाजिक कार्यो से जुड़े रहने का संकल्प लिया। हालांकि उच्च शिक्षा के लिये पिता ने इन्हें आर्थिक कठिनाई को महसूस नही होने दिया। परन्तु उस दौर में दिल्ली में रहकर पढ़ाई और फीस जमा करना चुनौती से कम नही थी।पिता ने उन्हें बेहतर शिक्षा के लिये हमेशा प्रेरित करते रहे। निशिकांत चिकित्सक बनने एवं सरकारी नौकरी में सिमट कर रहने के बजाय दुसरे मार्ग से अपनी पहचान बनाने और समाजसेवा में जुड़ने के लिये वैसे काम की तालाश में जुट गये जिससे वे अपने पिता के सपनों के साथ अपने गॉव जिला और राज्य का नाम रौशन कर सके। अपने शिक्षा के दौरान ही उन्हें मल्टीलेबल मार्केटिंग के सेमिनार में सिरकत करने का मौका मिला। एक बर्ष तक अपना सारा इर्फोट कम्पनी के लिये लगा दिया। उससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी होना भी प्रारंभ हो गया। और अपने बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये कम्पनी के साथ कार्य करना प्रारंभ कर दिया। परन्तु एक बर्ष के बाद ही कम्पनी आर्थिक विसंगतियों के कारण लॉक हो गयी। कम्पनी से जुड़े सारे कार्यकर्ता रातोंरात सड़क पर आ गये।
आज बादलों ने फिर साजिश की।

जहां मेरा घर था वहाँ बारिश की।
फलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की।
तो हमे भी जिद है वहाँ पर आशियाँ बनाने की।
निशिकांत के जीवन में यह पहला बड़ा ट्रेजडी के रूप में झटका लगा। परन्तु आत्मविश्वास से लबरेज निशिकांत ने अपने जीवन में हार नही मानने की ठान ली थी। और अपने को स्थापित करने के लिये फिर से संघर्ष करना शुरू कर दिया। बिना पूंजी के कोई ढंग का रोजगार करना काफी मुश्किल भरा था। अपने कई दोस्तों की सलाह पर जॉब कन्सलटेंसी का कार्य करना प्रारंभ कर दिया। शुरूआती दिनों में तो कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन समय के साथ रोजगार में भी अवसर बढ़ने लगे।और कॉल सेंटर एवं आई टी कंपनियों में अपने माध्यम से अपना बिजनेस को इस कदर बढ़ाया कि अच्छी आमदनी भी प्रारंभ हो गयी। बाबजूद निशिकांत इससे संतुष्ट नही थे। जॉब कंसल्टेंसी कार्य करने के दौरान कई सेमिनार में भाग लेते हुये देश के विभिन्न राज्यों के लोगां से सम्पर्क हुई जिसमें शिमला की रहने वाली रितु जो नामचीन कम्पनी में एरिया मैनेजर के पद पर कार्य करती थी। आये दिन प्राय: उससे सेमिनार के दौरान भेंट मुलाकात भी होती रहती थी। धीरे धीरे दोनो एक दुसरे के स्वाभाव से परिचित होते हुये दोनों में गाढ़ी दोस्ती हो गयी। हर एक सुख और दुख की बात भी दोनो में साझा होने लगी। अपने कैरियर के प्रति काफी सर्तक निशिकांत का काम छुटने के बाद फिर से सेटल होने के लिये कोई बेहतर कार्य की तालाश भी करनी थी। इस बीच दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी। निशिकांत ने अपने माता पिता से अपने प्यार के बारे में सारी बातें बता दिया।

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निशिकांत के पिता अपने पुत्र की खुशी के लिये अपने तरफ से हामी भी भर दिया। वे स्वयं दिल्ली जाकर रितु से मुलाकात कर रितु को अपने बहु के रूप में स्वीकार कर लिया। परन्तु राह इतना आसान नही था। रितु के पिता ने रितु को शादी करने के लिये कहा तो रितु खुल कर इस संदर्भ में बात नही कर सकी समय का पंछी चलता रहा और प्यार भी परवान पर था। निशिकांत इन दिनों काफी परेशान हो रहे थे। एक काम छुटने की चिंता तो दुसरी तरफ पिता को शादी के लिये रजामंदी देने के बाबजुद शादी में आ रही बाधाओं के कारण काफी परेशान हो रहे थे। रितु भी इनकी परेशानी से वाकिफ थी। अपने प्यार को अंजाम तक पहुॅचाने के लिये अपने परिवार से निशिकांत से शादी करने का प्रस्ताव रखा। घरवालों को निशिकांत के बारे में ज्यों ही पता लगा कि निशिकांत बिहार से है परिवार वालों को गुस्सा सातवें आसमान पर आ गया। इसकी खास वजह भी है । हालांकि बिहार का नाम देश के विभिन्न राज्यों में भले ही भैया और अन्य नामों से जाना जाता हो परन्तु यह भी सत्य है कि चाहे देश की राजनीति की बात हो देश के सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा की बात हो या अन्य क्षेत्र की बात हो तो बिहारियों का जलवा रहा है। बिहार के लोग किसी दुसरे राज्य में मजदूर का भी कार्य करते है तो पुरे स्वभिमान और ईमानदारी के साथ करते है। बाबजूद दुसरे प्रदेशों में बिहारियो को हेय दृष्ट्रि से देखा जाता है। बस यही कारण था कि रितु के परिवार वाले निशिकांत के साथ शादी का प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया। हालांकि रितु जानती थी निशिकांत में वह सभी गुण मौजुद है जो किसी भी परस्थितियों का सामना कर सकने में सक्षम और मेरा भविष्य भी निशिकांत के साथ सुरिक्षत है। परन्तु यह बात अपने परिवारवालों को कैसे समझा पाती की निशिकांत मेरे लिये महत्वपूर्ण है। अब निशिकांत के लिये बहुत ही परेशानी की बात हो गयी एक तरफ व्यवसाय को स्थापित करना और दुसरी तरफ रितु के साथ शादी की रस्में पुरी करना परन्तु निशिकांत भी हार मानने वालों में से नही थे। इन्होनें रितु से अपने माता पिता से एक बार भेंट करने के लिये राजी कर लिया। निशिकांत जानते थे कि मैं रितु के परिवार वालों को सभी तरह से संतुष्ट कर लुंगा। वही हुआ रितु अपने परिवार से निशिकांत को भेंट करा दिया। और निशिकांत रितु के परिवार को पुरी तरह से संतुष्ट कराने में सफल हो गये। अब निशिकांत के लिये रितु के साथ शादी का रास्ता साफ हो गया। इस बीच निशिकांत का गुजरात के बड़ौदा आना जाना लगा रहता था। क्योंकि निषिकांत की बहन एवं बहनोई बड़ौदा में ही रहते थे। निशिकांत कई वर्षो से बड़ौदा जा रहे थे। शादी के पूर्व अपने को व्यवसाय में स्थापित करने के पूर्व इन्होनें दिल्ली में मनोविज्ञान की प्रोफेसर एवं गुरू से मुलाकात कर अपने भविष्य में कैरियर को किस क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो इसके लिये अपनी कुडंली भी दिखाई। उन्होनें निषिकांत को आयरन का बिजनेस में सफलता प्राप्त करने की बात कही। निशिकांत ने रितु से शादी के पूर्व अपना कैरियर बड़ौदा में तालाश करने के लिये रितु से रायशुमारी किया। रितु ने भी इसमें हामी भरी चुंकि दिल्ली में अब ऐसा कोई कार्य नही बचा था जिससे अपने लक्ष्य को हासिल कर सके। बड़ौदा में आकर निशिकांत ने अपनी सारी जमा पूंजी को टीवीएस का शोरूम खोलने में लगा दिया। और कार्य करना प्रारंभ कर दिया। 2007 में रितु निशिकांत की जीवनसंगिनी बन गयी। सभी कार्यो को बखूबी हमसफर बनकर भी संभाल लिया। इस बीच दो पुत्री का जन्म भी हुआ। जिंदगी में अपने लक्ष्य और सकूं की तलाश में मनुष्य जमीन,आसमान और समंदर की असंख्य यात्रा करता है। यह यात्रा स्वप्न से यथार्थ की अंतर्यात्रा होती है। जमीनी यात्रा मनुष्य को प्रकृति और कुदरत के रहस्य, रोमांच और तिलिस्म सड़ रूबरू कराती है। तो समंदर की अतल गहराइयां, असीम विस्तार और करबटें मनुष्य को उसके बौनेपन का भी अहसास कराती है। जिंदगी में खुशियों की अहसास हृदय को काफी सकूँन दे रही थी लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था।


सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। परन्तु मनुष्य परिस्थितियों का दास है, निशिकांत के जीवन में संघर्षो का दौर समाप्त होने के बजाय सारे सपने उस वक्त बिखर गये जब निशिकांत के पिता की तबियत अचानक खराब हो गयी और उन्हें बेहतर चिकित्सा के लिये देश के विभिन्न नामचीन अस्पतालों में इलाज के लिये भटकना पड़ा। निशिकांत अपने पिता को मृत्यू के करीब देखकर हौसले पस्त होने लगे। कभी हार नही मानने वाले निशिकांत निर्विकार भाव से अपनी सारी ताकतें के साथ सारी मिल्कियत को अपने पिता का जीवन बचाने में लगाज दिया। जिस पिता ने हर समय सभी परिस्थितियों में देवदूत बनकर निशिकांत को सम्बल प्रदान करते रहे उसी देवदूत को चिकित्सक ने कई दिनों तक जीवनरक्षक प्रणाली उपकरण पर रखा परन्तु उन्हें बचाने में सफलता नही मिली। और निशिकांत के सर से पिता का साया उठ गया। निशिकांत उस वक्त अंदर से काफी टुट गये बड़ौदा में बहन और उनके जीजा ने उन्हें काफी संबल दिया। परन्तु मानसिक और आर्थिक दोनों रूप से टुट चुके निषिकांत के समक्ष दूर दुर तक कोई रास्ता नही था। लेकिन बड़ौदा में रहने वाली बहन ने अपने भाई को स्वयं घर खर्च से बचे पैसे से कई माह तक मदद किया। आर्थिक विषमताओं के कारण खरीदे गए घर को बेचकर किराए के घर से अपनी जीवन की नई पारी की शरुआत किया। अपने पिता के दिये गये आशीर्बाद और उनके सपनों को पुरा करने का जज्बा और जुनून कम नही हुआ।
खोल दी पंख मेरे कहता है परिंदा अभी और उड़ान बाकी है। जमीं नही है मेरी मंजिल अभी पूरा आसमान बाकी है।
लहरों की खामोशी को समंदर की बेवशी मत समझ, जितनी गहराई अंदर है बाहर उतना तूफान बाकी है। जब टूटने लगे हौसले तो याद रखना। बिना मेहनत के तख्तो ताज नही होते ढूंढ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रोशनी की मोहताज नही होती।

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अपना स्वयं का लाखों का कारोबार करने करने वाले निशिकांत एक वर्ष तक आईसी आई सी बैंक में एरिया मैनेंजर का कार्य करना प्रांरभ कर दिया। करीब एक बर्षो तक काम करने के बाद निशिकांत ने फिर से अपना काम करने एवं अपने मुख्य लक्ष्य को भेदने के लिये अपना प्रयास जारी कर दिया। 2010 में अपनी सारी पूंजी खो चुके निशिकांत ने अपने घर को चलाने के लिये अपनी पत्नी की सारी ज्वेलरी गिरवी रख दिया। और अपने हुनर का प्रयोग करते हुये घर से ही लैपटौप के माध्यम से एचआर का काम करना शुरू कर दिया। शुरूआत के छ: महीने का वक्त काफी बुरा रहा निशिकांत को यह बिल्कुल नही ज्ञात था कि हमारे दिन इतने बुरे होगें। लेकिन र्धय, साहस, और आत्मविश्वास को अपना हथियार बनाने बाले निशिकांत ने पुरी तन्मयता के साथ जिंदगी की आखिरी दावं खेली और एक साल गुजरते हुये चालीस हजार महीने की आमदनी के साथ शुरूआत हुआ कार्य लाखों तक होने लगा। धीरे धीरे निशिकांत के बुरे दिन खत्म होने लगे और स्वर्णिम भविष्य की राह दिखने लगी। वर्ष 2014 में स्वयं का आॅन लाइन एग्जाम आई टी कम्पनी खोल कर देश के नामचीन टीसीएस, अपटेक, सिफ्फी जैसे कंपनियों के साथ टाइअप कर अपना कारोबार को बढ़ाते हुये विस्तार किया। बड़ौदा के अलावे दिल्ली, अहमदावाद,उदयपुर मुम्बई आदि कई शहरों में भी अपना कार्यक्षेत्र को बढ़ाया। लेकिन तृष्णा ऐसी थी कि कभी चैन से रहने नही दिया। निशिकांत को बचपन से ही यह शौक था कि लोग हमें हमारे नाम से जाने और समाज के मुख्यधारा से नीचे रहने वाले लोगों को हमारे माध्यम से मुख्यधारा में लाने का प्रयास भी किया जाय। इसके लिये तो कार्यक्षेत्र भी व्यापक होना था और आर्थिक रूप से सक्षम भी होना जरूरी था। लिहाजा स्वयं का आईटी कम्पनी खोलने का लक्ष्य लेकर अपना कार्य करना प्रारभ कर दिया। 2014 में अपनी जमा पूंजी के साथ करोड़ों रुपए की गांरटी लोन के साथ रिच मांइड के नाम से स्वयं की आईटी कम्पनी को लांच किया। कम्पनी की आय से मात्र छह महीने में गारंटी लोन को चुकता कर दिया। परन्तु सरकार द्वारा आईटी कम्पनियों को कार्य के देने के लिये जो मानक होता है वह मानक पुरा नही होने के कारण सरकारी कार्य का ठेका नही मिल सका। लेकिन अपने कार्य में निपुण निशिकांत ने गवर्मेंट की बेसिल कम्पनी के साथ कार्य करते हूये लॉक डाउन के दौरान करोड़ो रुपए का बिजनेस दिया। आज हालात काफी बदल चुके है निशिकांत को दर्जनों नामी गिरामी कम्पनियों ने आॅफर दिया है। और कई कपंनियों के साथ कार्य हो रहा है। निशिकांत की माने तो आने वाले दिनों में बिजनेस का टर्नओवर सौ करोड़ से उपर हो जाएगा। इतना ही नही उन्होनें कहा कि आने वाले दिनों में हमारी कम्पनी देश के शीर्ष तीन बड़े आॅनलाइन एग्जाम आईटी कम्पनियों की श्रेणी में आ जायेगी। विभिन्न प्रदेशों के सरकारों के साथ आईटी से सबंधित कार्य हो रहे हैं। आज निशिकांत पुरी तरफ से स्थापित हो चुके है। लेकिन अभी भी उनके सपनें अधुरे है। लेकिन उन्हें पूर्ण विश्वास है कि मुझे अपने गावँ समाज एवं राज्य का नाम रौशन करना है। उन्होंने खबरों की तह तक के माध्यम से समाज के युवाओं को यह संदेश दिया की।


‘पंख से कुछ नही होता हौसलों से उड़ान होती है। मंजिले उन्हीं को मिलती है जिनके हौसलों में जान होती है।’
लिहाजा जीवन में सफल होने के लिये शिक्षा जरूरी है।सकारात्मक सोच के साथ पूरी ईमानदारी से कार्य करने से मंजिल अवश्य मिलती है। शून्य से शिखर तक पहुंचने के लिये कठिन संघर्षो के बीच खुद को तपाने की जरूरत होती है।क्योंकि सोना को तपा कर ही कुंदन बनाया जाता है।वक्त और हालात की परछाई के बीच युवा मेहनत करें और आत्मविश्वास धैर्य,शहनशीलता,त्याग,समर्पण को हथियार बनाकर सही समय पर सही निर्णय के साथ अस्त्रों का प्रयोग करें।
लहरों से डर कर नौका पार नही होती। कोशिश करने वालों की हार नही होती। समंदर से सीखा है हमने जीने का सलीका चुपचाप बहना और अपनी मौज में रहना।
खबरों की तह तक के तमाम पाठकों, शुभेच्छुओं को रिच माइंड्स परिवार के तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं।

फिर से ज़ख़्मी म्यांमार

फिर से ज़ख़्मी म्यांमार

SS Bhatia
● श्याम सुंदर भाटिया

दुनिया को जैसा अंदेशा था, बिल्कुल वैसा ही हुआ, लेकिन नोबल पुरस्कार विजेता एवम्
डेमोक्रेसी की प्रबल प्रहरी आन सान सू की सेना के इस खतरनाक इरादों को सूंघ नहीं पाईं।
पड़ोसी मुल्क म्यांमार में अंततः लोकतंत्र फिर से चोटिल हो गया है। बेइंतहा ताकतवर सेना के
तख्तापलट के बाद नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी-एनएलडी की सुप्रीमो अब सेना के कब्जे में हैं।
राष्ट्रपति यू विन मिंट को पदाच्युत करके सत्ता सेना प्रमुख मिन आंग लाइंग को सौंप दी गई है।
उपराष्‍ट्रपति मिंट स्‍वे की कार्यकारी राष्‍ट्रपति के लिए ताजपोशी कर दी गई है। पांच दशक
तक सत्ता में रहने के बाद म्यांमार एक बार फिर सेना की गिरफ़्त में है। वहां एक साल के लिए
आपातकाल घोषित कर दिया गया है। 2015 में उम्मीद जगी थी, लोकतंत्र का उदय हो गया है।
संसदीय चुनाव में आन सान सू की की पार्टी एनएलडी बहुमत से सत्तारूढ़ तो हो गई, लेकिन
2008 के संविधान की जड़ों में गहरी सैन्य प्रावधान होने से न तो आन सान सू की राष्ट्रपति बन
पाईं और न ही एनएलडी सरकार के 2020 में सौ से अधिक संवैधानिक संशोधनों प्रस्तावों को
कानून में तब्दील करा पाईं। इन संशोधनों में वे अनुच्छेद भी शामिल थे, जिनकी वजह से आन
सान सू की राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य करार दे दी गईं थीं। इन मसौदों पर सेना के
प्रतिनिधियों का विरोध स्वाभाविक था। सच में हुआ भी ऐसा। सैन्य प्रतिनिधियों की मुखालफत
के चलते कोई भी प्रस्ताव मंजूर नहीं हो सका।

कभी बर्मा नाम से पहचाने जाने वाले म्यांमार में सेना और लोकतंत्र गाड़ी के दो पहियों के
मानिंद नहीं हो पाए। नतीजन लोकतंत्र बेपटरी हो गया। म्यांमार में तख्तापलट सियासत को
समझने के लिए 2008 के संविधान के पन्नों को पलटना जरूरी है। वहां के सैन्य तानाशाहों की
नीयत यह नहीं रही, म्यांमार की माटी में लोकतंत्र पुष्पित -पल्लवित हो। संसद की 25 प्रतिशत
सीटें वहां की सेना के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें 2008 के संविधान के मुताबिक रिजर्व हैं। इसके
अलावा सेना के प्रतिनिधियों के लिए तीन अहम मंत्रालय – गृह, रक्षा और सीमा मामलों से जुड़ा
मंत्रालय भी शामिल है। इसी वजह से सरकार वहां के संविधान में कोई भी सुधार करने में
नाकाम रहती है। म्यांमार के संविधान की जड़ों में सेना की गहरी पैठ है। यूं तो म्यांमार अब

संघीय गणराज्य व्यवस्था वाला देश है, जहां पांच साल में एक बार-एक साथ राष्ट्रीय, प्रांतीय
और क्षेत्रीय स्तर पर चुनाव होते हैं।

लोकतांत्रिक इतिहास में दूसरी बार हुए चुनाव में वैसे तो करीब सौ सियासी दलों ने भागीदारी
की, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दो दलों के बीच ही चुनावी जंग हुई। आन सान सू की की एनएलडी
और सेना के पूर्व अफसरों की पार्टी यूएसडीपी में मुख्य मुकाबला हुआ। इसमें आयरन लेडी के
दल एनएलडी के हाथों फिर सत्ता की चाबी आ गई। नवंबर 2020 के चुनावी नतीजों को
म्यांमार की सेना पचा नहीं पाई। आग बबूला, लेकिन शातिर सैन्य ताकतों ने राष्ट्रपति भवन से
लेकर चुनाव आयुक्त तक यह कह कर दस्तक दी, चुनाव नतीजों में बड़े स्तर पर हेराफेरी हुई है।
सैन्य ताकतों को इन दोनों उच्च वैधानिक संस्थाओं से मन मुताबिक पॉजिटिव रिस्पॉन्ड नहीं हुआ
तो रातों-रात बंदूकों के साए में चुनी हुई सरकार को बंधक बना लिया। सच्चाई यह है, फर्स्ट
फरवरी को नई संसद का सत्र का श्रीगणेश होना था, लेकिन अल सुबह आयरन लेडी आन सान
सू की , राष्ट्रपति यू विन मिंट समेत एनएलडी दिग्गज नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
दरअसल सैन्य ताकतों ने लोकतंत्र के जनादेश को सैनिकों के जूतों, रायफलों की नोकों और
ताकत की मदहोशी में कुचल दिया। सेना की सत्ता की भूख के चलते चंद बरसों बाद म्यांमार में
लोकतंत्र फिर लहूलुहान है।

म्यांमार का भारत से गहरा रिश्ता है। 1937 तक बर्मा भी भारत का अभिन्न अंग था। यह बाद
दीगर है, ब्रिटिश राज के अधीन था। भारत और म्यांमार की सीमाएं आपस में लगती हैं।
पूर्वोत्तर में चार राज्य -अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की 1600 किमी
लम्बी सीमा म्यांमार के साथ लगती है। भारत-म्यांमार के करीब 250 गांव सटे हैं। इनमें तीन
लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। ये अक्सर बॉर्डर क्रॉस करते हैं। म्यांमार में बौद्धों की संख्या
सर्वाधिक है। इस नाते भी भारत का सांस्कृतिक सम्बन्ध बनता है। पड़ोसी देश होने के कारण
भारत के लिए म्यांमार का आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक खासा महत्व है। भारत की
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी म्यांमार बहुत महत्वपूर्ण है। म्यांमार न केवल सार्क, आसियान का
सदस्य है, बल्कि तेजी से बढ़ते दक्षिण पूर्व एशिया की अर्थ व्यवस्था का एक द्वार भी है। भारत के
लिए थाईलैंड और वियतनाम सरीखे देशों के बीच वह सेतु के मानिंद भी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र
मोदी सरकार के पड़ोसी पहले की नीति के तहत तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज

ने 2014 में म्यांमार की यात्रा की थी। आन सान सू की से भारत का विशेष रिश्ता है। इस
आयरन लेडी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज में अपनी स्टडी की। इनकी माताश्री
खिन की भारत में राजदूत भी रही हैं। आन सान सू की को संघर्ष करने का ज़ज़्बा विरासत में
मिला है। वह म्यांमार के राष्ट्रपिता आंग सांग की पुत्री है, जिनकी 1947 में राजनीतिक हत्या
कर दी गई थी। उन्होंने बरसों-बरस जेल में तो रहना पसंद किया, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों
से कभी समझौता नहीं किया। भारत से सू का गहरा नाता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति गहरी
आस्था रखने वाली सू की को नोबल शांति पुरस्कार के अलावा भारत का प्रतिष्ठित जवाहर लाल
नेहरू पुरस्कार भी मिल चुका है।

सैन्य तख़्तापटल के बाद म्यांमार के हालात नाजुक हैं। बड़े शहरों में मोबाइल, इंटरनेट डाटा
और फ़ोन सर्विस बंद कर दी गई है। सरकारी चैनल एमआरटीवी का प्रसारण नहीं हो रहा है।
म्यांमार की राजधानी नेपिडॉ के साथ सम्पर्क टूट चुका है। सबसे बड़े शहर यंगून इंटरनेट
कनेक्शन तक सीमित है। बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टीवी समेत अंतर्राष्ट्रीय प्रसारकों को ब्लॉक कर
दिया गया है। स्थानीय स्टेशन ऑफ एयर कर दिए गए हैं। बैंकों ने फिलहाल सभी आर्थिक
सेवाओं को रोक दिया है। नकदी की कमी न हो, इस आशंका ने मद्देनजर यंगून में एटीएम के
बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हैं। भारत, अमेरिका, यूएनओ, ब्रिटेन समेत दुनिया के बड़े देशों ने
म्यांमार के बिगड़ते हालात पर गहरी चिंता जताई है। भारत का विदेश मंत्रालय म्यांमार की
स्थिति पर पैनी नजर रखे हुए है। बीबीसी दक्षिण-पूर्व एशिया के संवाददाता जॉनथन हेड ने
मौजूदा हालात पर सटीक कमेंट करते हुए कहा, म्यांमार सेना का यह कदम दस साल पहले
उसी के बनाए संविधान का उल्लंघन है।

( लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं। )

पेंडुलम की मानिंद नेपाली डेमोक्रेसी

पेंडुलम की मानिंद नेपाली डेमोक्रेसी

SS Bhatia
● श्याम सुंदर भाटिया

● श्याम सुंदर भाटिया
दुनिया में मानवीय हक.हकुकों के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली मुफीद मानी जाती है। अमेरिका से लेकर हिंदुस्तान की सियासत में लोकतंत्र के सफर की मिसाल बेमिसाल है। अमेरिका के ताजा तरीन जख्मों को न कुरेदें तो दोनों लोकतांत्रिक देशों का सिस्टम दीगर देशों के लिए अनुकरणीय है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के सियासी और लोकतांत्रिक नासूरों का जिक्रा फिर कभी करेंगेए लेकिन फिलवक्त भारत समेत दुनिया की नजर नेपाल पर है। नेपाल में लोकतंत्र पेंडुलम मानिंद हिचकोले भर रहा है। संविधान और लोकतांत्रिक प्रणाली के दायरे में नेपालए वहां के सियासी संग्रामए राजनीतिक गठबंधन की विश्वसनीयताए लोकतांत्रिक ढांचाए राजशाही.लोकशाही पर मंथन की दरकार है। नेपाल के 250 बरसों के इतिहास में डेमोक्रेसी सिस्टम नई.नवेली दुल्हन की मानिंद है। अंध ड्रैगन समर्थक वहां के प्रधानमंत्री श्री केपी शर्मा ओली और कल तक उनके सियासी मित्र रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच सियासी चालें दुनिया के सामने हैं। नेपाल में सत्तारुढ़ दल. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी .एनसीपी अब ओली.प्रचंड खेमों में दो फाड़ है। एक.दूसरे को नीचा दिखाने और एक.दूसरे से शक्तिशाली होने की होड़ लगी है। शतरंज के खेल की मानिंद शह और मात की चालें जारी हैं। प्रधानमंत्री ओली ने गए साल 20 दिसंबर को सत्ता संघर्ष के चलते अचानक प्रतिनिधि सभा को भंग करके राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी से देश में नए सिरे से चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी थी। राष्ट्रपति भवन ने भी बिना समय गंवाए चंद घंटों बाद प्रतिनिधि सभा को भंग करके तीस अप्रैल और दस मई को चुनाव कराने का बिगुल बजा दिया थाए लेकिन प्रचंड गुट ने ओली के इस असंवैधानिक कदम को ललकारते हुए कहाए नेपाल में मुश्किल से हासिल की गई संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य प्रणाली को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। प्रचंड भी चुप बैठने वालों में नहीं हैं। उन्होंने करीब एक माह बाद 22 जनवरी को ओली के खिलाफ एक बड़ी रैली करके 24 जनवरी को कार्यवाहक पीएम ओली को न केवल कम्युनिस्ट पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दियाए बल्कि प्रचंड गुट ने ओली की सदस्यता को भी प्रभाव से रद्द कर दिया। इससे पूर्व प्रचंड गुट ओली को अध्यक्ष पद से भी हटा चुका है।

ऐसे में पड़ोसी देश नेपाल में बड़ा सियासी भूचाल आ गया है। 68 साल के ओली के सियासी भविष्य पर सवाल दर सवाल उठने लगे हैं। क्या ओली अपने सियासी दुश्मन प्रचंड से हार मान लेंगेघ् पार्टी से बेदखल होने के बाद ओली की पीएम की कुर्सी चली जाएगीघ् क्या सुप्रीम कोर्ट ओली के पक्ष में फैसला देगी या फिर विपक्ष मेंघ् यह बाद दीगर हैए ओली का प्रतिनिधि सभा को भंग किया जाना संवैधानिक नहीं है। नेपाल के संविधान विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य इसे नेपाल के नए संविधान के साथ धोखा बताते हैं। कहते हैंए सिर्फ सरकार के अल्पमत या त्रिशंकु होने पर ही इसे भंग किया जा सकता हैए लेकिन अभी ऐसे हालात नहीं थे। नेपाली सियासी गलियारों में चर्चा हैए मनभेद और मतभेद इतने आगे बढ़ चुके हैंए राजनीति के चतुर खिलाड़ी ओली भी अपने सियासी दुश्मन से सहज पराजित होने वाले नहीं हैं। अब दोनों ही गुट नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी और चुनाव चिन्ह को लेकर अपने.अपने दावे पेश करेंगे। सत्ता की भूख की यह लड़ाई फिर से चुनाव आयोग से लेकर शीर्ष अदालत की शरण में होगी। प्रतिनिधि सभा भंग करने के खिलाफ प्रचंड खेमा पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा है। एनसीपी से ओली को बाहर करने से पहले प्रचंड गुट ने वैधानिक गुणा.भाग किया है। प्रचंड गुट ने इस बड़े एक्शन से पहले ओली को पार्टी विरोधी गतिविधियों और संसद को भंग किए जाने के फैसले को लेकर को उनसे जवाब.तलब किया था। जारी कारण बताओ नोटिस में तीन दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया थाए लेकिन ओली ने कोई जवाब नहीं दिया।

नेपाल में प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय सभा दो सदन हैं। सरकार बनाने के प्रतिनिधि सभा में बहुमत जरुरी होता है। प्रतिनिधि सभा के 275 ने से 170 सदस्य सत्तारुढ़ एनसीपी. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पास हैं। नेपाल में 2015 में नया संविधान बना था। 2017 में अस्तित्व में आई संसद का कार्यकाल 2022 तक का था। 2018 में ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन .यूएमएल और पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन ;माओवादी केंद्रितद्ध का विलय होकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी .एनसीपी का गठन हुआ था। विलय के समय तय हुआ थाए ढाई वर्ष ओली पीएम रहेंगे तो ढाई वर्ष प्रचंड पीएम रहेंगे। प्रचंड चाहते थेए एक पद.एक व्यक्ति के सिद्धांत पर एनपीसी को चलाया जाएए इसीलिए प्रचंड ओली पर पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव डालते रहेए लेकिन ओली टस से मस नहीं हुए थे। इसके उलट जब प्रचंड को पीएम का पद सौंपने का वक्त आया तो उन्होंने संसद भंग करने की सिफारिश कर दी थी। उल्लेखनीय हैए 44 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी में भी ओली अल्पमत में थे। प्रचंड के पास 17ए ओली के पास 14 और नेपाल के साथ 13 सदस्य हैं। प्रतिनिधि सभा भंग करने से पूर्व भी दिलचस्प सियासी कहानी है। एनसीपी के असंतुष्ट प्रचंड गुट ने 20 दिसंबर की सुबह पीएम ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पत्र का नोटिस दिया था। प्रचंड खेमे ने राष्ट्रपति से विशेष सत्र बुलाने का आग्रह भी किया थाए लेकिन ओली समर्थकों को इसकी भनक लग गई थी। साथ ही साथ ओली अपने खिलाफ राजशाही वापसी को लेकर देश में हो रहे धरने और प्रदर्शन से भी खासे तनाव में थे। नतीजन प्रधानमंत्री ओली ने आनन.फानन में संसद भंग करने की सिफारिश कर दी थी। बताते हैंए इस अविश्वास प्रस्ताव को प्रचंड खेमे के मंत्रियों और 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त था।


नेपाल में राजशाही और लोकशाही की लुका.छिपी 70 बरसों से जारी है। इस पड़ोसी देश को पहले गोरखा राज्य के नाम से जाना जाता था। इसके इतिहास का जिक्र फिर कभी करेंगे। नेपाल में सबसे पहले 1951 में लोकतंत्र की स्थापना हुई। 1960 में राजा महेंद्र को लोकशाही अनुकूल नहीं लगी तो उन्होंने संसद को भंग कर दिया। इसी के साथ नेपाल में लोकतान्त्रिक व्यवस्था खत्म हो गई। राजशाही का फिर से कब्जा हो गया। 2008 में नेपाली राजशाही की फिर विदाई हो गई। माओवादियों ने चुनाव जीतने के बाद राजा को अपदस्थ कर दिया था। अंततः नेपाल में नया संविधान 20 सितम्बरए 2015 को लागू हुआ। भारत के डॉण् भीमराव आंबेडकर की मानिंद नेपाल की संविधान रचियता भी दलित समाज की कृष्णा कुमार पेरियार हैं। नेपाल इससे पहले दुनिया का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र थाए लेकिन मौजूदा संविधान में नेपाल धर्मनिरपेक्ष है। इसमें कोई शक नहींए नेपाली डेमोक्रेसी आजकल कड़े इम्तिहान से गुजर रही है। संत कबीर दास ने कहा थाए बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए३ सरीखा कथन मौजूदा वक्त में नेपाल के प्रधानमंत्री श्री केपी शर्मा ओली पर शत.प्रतिशत चरितार्थ हो रहा है।

: लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं।

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