• आप की जीत से भाजपा विधायक खुश
  • पूर्व मंत्री रणधीर सिंह ने दी 11 बकरों की बलि
  • बाबा झुमराज के बहाने पत्रकारों को साधा
  • बाबूलाल की घर-वापसी से सांसत में कैरियर

देवघर : भारतीय जनता पार्टी के सारठ से विधायक और पूर्व मंत्री रणधीर सिंह इन दिनों अपने भविष्य के राजनैतिक कैरियर को लेकर काफी असमंजस की स्थिति में दिख रहे हैं। कारण कई हैं। इस कारण वे अभी से वैकल्पिक रणनीति बनाने में लगे हैं। भाजपा में उनकी राह आगामी दिनों में कठिन हो सकती है। झारखंड विकास मोर्चा का अब अस्तित्व खत्म हो गया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस या राष्ट्रीय जनता दल जैसी विपक्षी पार्टियों में उनके प्रवेश की न तो कोई संभावना है और न ही उनकी स्वीकृति की रूपरेखा। ऐसे में वे आम आदमी पार्टी (आप) की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं। इन्हीं कारणों से 11 फरवरी को आप की दिल्ली-जीत से उत्साहित रणधीर सिंह ने जमुई जिला स्थित बाबा झुमराज के सामने भविष्य का ताना-बाना बूना। गवाह रहे उनके धूर-समर्थक कार्यकर्ता और चुनिंदा समर्थक पत्रकार। यहां पूर्व मंत्री ने 11 फरवरी की जीत की खुशी में 11 बकरों की बलि दी। बड़ी बात यह रही कि उन्होंने इस खुशी को साझा करने के लिए उनलोगों को ही अपने साथ लिया जो उनके चाटूकार माने जाते हैं। भाजपा के समर्पित और सधे कार्यकर्ता न बुलाये गये और न ही उनकी उपस्थिति दिखी। सूत्रों की मानें तो आप के सर्वेसर्वा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मुलाकात कर विधायक रणधीर सिंह जल्द ही आने वाले दिनों के लिए मोहरे साधेंगे।

बाबूलाल मरांडी का कारक

बाबूलाल मरांडी 17 फरवरी को औपचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी में वापसी कर लेंगे। 11 फरवरी को उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का भाजपा में विलय करने की घोषणा कर दी है। संताल परगना प्रमंडल की राजनीति में इस निर्णय के दूरगामी और काफी बड़े स्तर पर प्रभाव देखने को मिलेंगे। बाबूलाल मरांडी ने संताल परगना में कई युवाओं के राजनीतिक कैरियर को दिशा दी। विशेषकर देवघर जिले में राज पलिवार और रणधीर सिंह इस तथ्य के उदाहरण हैं। भाजपा में रहते हुए बाबूलाल ने राज पलिवार को विधायक बनाने में महती भूमिका निभायी थी, वहीं झाविमो के गठन के बाद रणधीर सिंह को उन्होंने अर्श तक पहुंचाया। हालांकि इन दोनों ही नेताओं के उभार में एकमात्र भूमिका बाबूलाल की ही नहीं रही। राज पलिवार की जीत में भाजपा की बढ़ती स्वीकार्यता भी बड़े तथ्य थे। गौरतलब यह भी है कि उस समय संताल परगना में भाजपा का मतलब ही बाबूलाल मरांडी हुआ करते थे। इसी प्रकार रणधीर की जीत में उनकी अपनी मेहनत और सारठ विधानसभा क्षेत्र की जनता में वैकल्पिकता की चाह बड़े कारक थे। भाजपा छोड़ने के समय राज ने बाबूलाल का साथ नहीं दिया था और झाविमो से जीतने के बाद रणधीर ने भी उन्हें अलविदा कह दिया।

सबके जख्म जिंदा हैं

राजनीति संभावनाओं का भंवरजाल है। बड़े खिलाड़ी राजनीति के पुराने ही नहीं, संभावित दोस्तों और दुश्मनों पर भी अपनी पूरी नजर रखते हैं। यहां घावों पर मरहम नहीं लगाये जाते बल्कि जख्मों को कूरेद कर जिंदा कर रखा जाता है। बाबूलाल मरांडी राजनीति के शातिर खिलाड़ी हैं। इस तथ्य से शायद ही किसी को ऐतराज हो। दुमका से शिबू सोरेन जैसे दिग्गज को पटखनी देने की बात हो अथवा भाजपा से अलग होकर राज्य-स्तर पर झाविमो को सशक्त बनाने की बात, हमेशा ही बाबूलाल मरांडी ने अपने को राजनीति का बरगद साबित किया। ऐसे में इस बात की कम संभावना ही है कि उन्होंने अपने जख्मों को भुला दिया होगा। इन सब तथ्यों की पृष्ठभूमि में बाबूलाल मरांडी जब भाजपा में प्रांत की शीर्ष-कमान लिये हुए घर-वापसी कर रहे हैं तो काफी संभावना है कि राज और रणधीर अपने वर्तमान घर में उपेक्षितों जैसा व्यवहार पायें। शायद उनके लिए भविष्य में भाजपा की अंदरूनी राजनीति सुखद-सहज नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति में उन्हें नये घर की तलाश करनी होगी। राज पलिवार संघ-भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं इसलिए उनके राजनीतिक-बदलाव की संभावना काफी कम है। वहीं रणधीर सिंह ने अपने छोटे-से ही राजनैतिक जीवन में अपनी महत्वाकांक्षा को जिस प्रकार सामने लाया है, उससे यही अपेक्षा है कि वे कोई सुरक्षित घर तलाशें।

गोड्डा की संसदीय बिसात

गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में वर्तमान सांसद निशिकांत दूबे को जो नेता निकट भविष्य में अपनी महत्वाकांक्षी राजनीति और कद्दावर स्वीकार्यता के साथ सामने से टक्कर दे सकते हैं, उनमें पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव और सारठ विधायक रणधीर सिंह प्रमुख हैं। अन्य नामों में मधुपुर विधायक और मंत्री हाजी हुसैन अंसारी तथा जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी भी विशेष हैं लेकिन सबकी नजर प्रदीप और रणधीर के आगामी कदमों पर ही है। प्रदीप यादव ने इस संसदीय क्षेत्र का पूर्व में एक बार प्रतिनिधित्व किया भी है। तथ्य तो यह भी है कि झाविमो के गठन में प्रदीप यादव यदि बाबूलाल मरांडी के अनुषंगी नहीं बने होते तो वही इस क्षेत्र में भाजपा के सबसे बड़े चेहरे होते। शायद उनका कद भाजपा में इस समय वर्तमान निशिकांत दूबे के कद से भी काफी बड़ा हो गया होता। न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम अर्थात न इधर के हुए न उधर के हुए। बहरहाल, सामयिक तथ्य यह है कि प्रदीप यादव का यही हाल रहा। जिन बाबूलाल के लिए उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर को दांव पर लगा दिया, वे ही उनसे अलग हो गये। बावजूद इसके, प्रदीप यादव गोड्डा संसदीय क्षेत्र के लिए आज भी बरगद हैं और शायद आगे भी रहेंगे। इस इलाके में बरगद के दूसरे पेड़ के रूप में जिस दूसरे नेता का राजनीति में तेजी से उभार हो रहा है, वह नाम है रणधीर सिंह। वे सारठ में झाविमो व भाजपा के बलबूते नहीं, अपने दम पर राजनीतिक सीढ़ियां तय कर रहे हैं। सारठ विधानसभा क्षेत्र दुमका संसदीय क्षेत्र का हिस्सा भले हो लेकिन यहां का गहरा प्रभाव गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के चुनाव पर पड़ता है। तय है कि विधायक और मंत्री बनने के बाद रणधीर अब संसद में पहुंचना चाह रहे होंगे। भाजपा में नये प्रभावशाली दिग्गज तथा संभावित अहित-चाहक बाबूलाल मरांडी और पुराने प्रतिद्वंद्वी निशिकांत दूबे की मौजूदगी में रणधीर सिंह अवश्य ही नये संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं।

अस्तित्व बचाने की बात

तथ्यों से स्पष्ट है कि रणधीर सिंह के लिए काफी कम विकल्प खुले हैं। नयी संभावनाओं और अपेक्षाओं के बीच अपना अस्तित्व बचाने के लिए उन्हें भाजपा को अलविदा कहना ही होगा। कभी घर रहा झाविमो खत्म हो गया है। विपक्षी पार्टियों यथा कांग्रेस, झामुमो और राजद में पहले से ही काफी सिर-फुटौव्वल है। ऐसे में भारतीय राजनीति के परिदृश्य में नये मानक स्थापित कर रही आम आदमी पार्टी रणधीर सिंह के लिए सशक्त और अच्छा ठौर साबित हो सकती है। झारखंड की राजनीति में प्रवेश के लिए आप की आवश्यकता और महत्वाकांक्षी रणधीर सिंह के लिए शीर्ष की चाह। इन दोनों हेतु इनका एकाकार होना जरूरी है। देखने वाली बात होगी, यह होता कब है। विधायक की चाल पर नजदीक से नजर रखने वाले लोगों की मानें तो आप-रणधीर का मिलन होगा जरूर, यह निश्चित है। पूरी संभावना है कि राजनीति के मोहरे-बिसात को अपने निश्चित और अनुकूल जगहों पर रखने-बिछाने के बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के समय रणधीर सिंह आम आदमी पार्टी का दामन थामेंगे। आप की ओर से वे लोकसभा चुनाव में गोड्डा से उम्मीदवार बनेंगे। यहां की हार-जीत के बाद वे फिर आगे की राह को लेकर रणनीति बनायेंगे। सारठ विधायक रणधीर सिंह का जनता के लिए समर्पण और झारखंड में मंत्री पद पर रहते हुए भी निष्कलंक और बेदाग रह जाना उनकी उपलब्धि है। यह आप और रणधीर को एक-दूसरे के नजदीक लायेगा। बावजूद इसके, प्रश्न तो बना ही रहेगा कि आखिर इतने कम समय में ही दल-बदल का कीर्तिमान स्थापित करने के बाद क्या रणधीर सिंह जिले की राजनीति के पुराने दिग्गज उदयशंकर सिंह उर्फ चुन्ना सिंह बनने की ओर अग्रसर हैं।