देवघर : शायर कैफी आजमी की इस पंक्ति “रूत बदल डाल अगर फूलना- फैलाना है तुझे/उठ मेरी जान! मेरे साथ चलना है तुझे/कद्र अब तक तिरी तारीख ने  जानी ही नहीं/ तुझ में शोले भी है, बस अश्कफिशानी ही नहीं.. को मूलमंत्र मानने वाली देवघर की बेटी व बॉलीवुड फिल्म निर्देशक पायल अपनी फिल्मों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण की पुरजोर वकालत करती है। इस बावत पायल कहती हैं लोगों को जगाने के लिए महिलाओं का जागृत होना बहुत ही जरूरी है। और एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है परिवार आगे बढ़ता है, समाज आगे बढ़ता है, गांव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है।

भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरूरी है, जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा बलात्कार, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी आदि। और समय समय पर मैंने उपरोक्त सामाजिक बुराइयों का समूल नाश करने को अपने फिल्मों का विषय बनाती रहीं हूँ और  न सिर्फ़ महिलाओं में प्रेरणा भरने का काम किया बल्कि उन्हें सशक्त बनाने का भी काम करती आ रही हूँ। महिला सशक्तीकरण को विषय बनाने को ले के पायल बतलाती है जब दिल्ली में मैं राजीव गांधी की जीवनी पर को डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्देशित कर रही थी उन्हीं दिनों दिल्ली में निर्भया कांड घटित हुआ था। मैंने अखबारों और न्यूज चैनलों के माध्यम से निर्भया को समाज के वीभत्स अंगों के जघन्य करतूतों के कारण तिल तिल मरते देखा। 13 दिनों तक अस्पताल में पड़े निर्भया की सिसकियों को सुना। उसकी पीड़ा को महसूस किया। और उसके निधन पर पहली प्रतिक्रिया…  स्तब्ध थी… मौन थी।

उस मासूम की आत्मा की शांति के लिए देश में एक अनकहा मौन रखा गया। लेकिन उसकी मौत पर मौन इस अपराध का उपसंहार कभी नहीं हो सकता था। मैं बेचैन थी जिसे घटना ने पूरे देश को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया, सड़क से लेकर संसद तक इसके खिलाफ आवाज उठाई गयी बावजूद इसके देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस कांड की पुनरावृत्ति होती रही। मुझे लगा इस कांड को केन्द्र में रखकर एक ऐसी फिल्म का निर्माण करूं जिससे महिलाएं में इस घटना से बचाव को लेकर जागृति आये साथ ही साथ इस फिल्म को देखने के बाद कोई भी दरिंदा इस प्रकार की घिनौनी हरकत करने के लिए सौ बार सोचे। इसके बाद मैने अपने अन्य फिल्मों लेडी सिंघम, अपराजिता, ट्रेड, हैदराबाद इनकाउनटर आदि में भी महिला को जगाने और स्ट्रांग बनाने का प्रयास किया। महिला को सशक्त बनाने के लिए सिनेमा क्यों के जवाब में पायल कहती है सिनेमा आज के दिनों में सम्प्रेषण का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। अनपढ़ लोगों तक भी इनकी पहुंच होती है। और महिलाओं का एक बड़ा वर्ग आज साक्षर नहीं है। जब कि शब्दों की पहुंच सिर्फ पढ़े लिखे लोगों तक ही होती है।इसको लेकर मुझे देश के अनेको हिस्से में कई अवार्ड भी मिले है इनमे मुम्बई में मिले स्त्री शक्ति सम्मान और लखनऊ में राजपाल के हाथों से मिले मरवलस परसोनालिटी अवार्ड प्रमुख  हैं।