• निधि के अभाव में पंचायत समिति सदस्य नहीं कर पा रहे हैं जरूरतमंदों की सेवा
  • सरकार से पंचायत समिति के पद को ही समाप्त करने का किया आग्रह

चकाई/तरुण मिश्रा : कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के बीच जहाँ सभी जन प्रतिनिधि अपने-अपने विकास निधि की राशि के सहारे लोगों की सेवा में जुटे हैं तो वहीं कुछ जन प्रतिनिधि ऐसे भी हैं जिनके पास निधि का घोर अभाव है। ऐसे में ये जरूरतमंदों की वैसी सेवा नहीं कर पा रहे हैं जैसी जनता इनसे अपेक्षा रखती है। प्रखंड उप प्रमुख अनुष्ठा देवी का ऐसा ही दर्द उस समय छलक पड़ा जब वो जरूरतमंदों के बीच राहत सामग्री का वितरण कर रही थीं। उन्होंने कहा कि त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में पंचायत समिति पंगु बनकर रह गया है। जिसके पास न तो विकास मद की कोई राशि है और न ही कोई दूसरा विकल्प जिसके सहारे लोगों की मदद की जा सके।

ऐसे में जहाँ सभी जन प्रतिनिधि कोरोना जैसे भीषण महामारी में जरूरतमंदों को अपने विकास मद की राशि से मदद पहुंचा रहे हैं तो वहीं पंचायत समिति सदस्य राशि के आभाव में खुद लाचार एवं बेबस बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि पंचायत समिति के पास ऐसी कोई राशि नहीं है जिसके सहारे लोगों के बीच जाकर कोरोना जैसे जानलेवा महामारी से बचाव के लिए राहत सामग्री का वितरण किया जा सके। ऐसे में सभी पंचायत समिति सदस्य निजी राशि के सहारे लोगों की मदद कर रहे हैं। एक जनप्रतिनिधि होने के कारण पंचायत समिति सदस्यों से लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक है लेकिन राशि न होने से मदद करने में कठिनाई आ रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार द्वारा पंचायत समिति सदस्यों को पंचम वित्त की राशि के सहारे राहत सामग्री वितरण करने की अनुमति प्राप्त भी होगा तो यह योजना सरकारी कुव्यवस्था की भेंट चढ़ चुका है।

ऐसे में इसके सहारे मदद की अपेक्षा रखना बेईमानी है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में ऐसा लग रहा है कि पंचायत समिति सदस्य को जनप्रतिनिधि कहलाने का कोई हक ही नहीं है। लॉकडाऊन जैसे विपरीत समय में लोगों की मदद किए बिना पंचायत समिति सदस्य अपने-अपने पंचायतों में लोगों के बीच क्या संदेश लेकर जाएंगे ये बड़ा प्रश्न है। ऐसे में सरकार द्वारा पंचायत समिति के लिए विकास निधि की राशि उपलब्ध कराई जाय या फिर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था से पंचायत समिति सदस्य के पद को ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि जब जन प्रतिनिधि को जनता की सेवा करने का मौका ही नहीं मिलेगा तो वैसे पद पर रहकर जनप्रतिनिधि कहलाने का कोई औचित्य ही नहीं बच जाता है।