लातेहार/बद्री गुप्ता : महुआडाँड़ प्रखण्ड में गर्मी बढ़ने के साथ-साथ गरीबों के फ्रिज कहे जाने वाले घड़ा की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है। गर्मी बढ़ने से प्रखंड महुआडाँड़ बाजार सहित नेतरहाट, में घड़े की दुकानें सप्ताही बाजार के सोमवार, गुरूवार, बुधवार, को लगाया जाता है. मटका केवल गरीबों का फ्रिज ही नहीं, बल्कि इसके पानी की शीतलता और सोंधी महक से उच्च वर्ग भी अछूता नहीं. फ्रिज और वाटर कूलरों का पानी पीने वाले लोग भी मटके के पानी को ही पसंद करते है. यही नहीं प्रखंड के करीब सभी सरकारी विभाग में आज भी मटके का पानी ही पसंद किया जाता है. फ्रिज व वाटर कूलरों के आने से मटके की माग कम हुई है. लेकिन जब लोग मटके के पानी की शीतलता को याद करते है, वह अनायास ही घड़े बनाने वालों के पास चले आते है.
इस संबंधी महुआडाँड़ से 7 किलोमीटर दूर गोठगांव के कुम्हार टोली में घड़ें का कार्य करने वाले कई कुम्हार का कहना है कि गर्मियों में मटकों की बिक्री में बढ़ोतरी हो जाती है. उन्होंने बताया कि हर वर्ष सरकारी विभाग से उनके पास मटकों के लिए स्पेशल डिमाड आती है. हमारी घडा महुआडाँड़, नेतरहाट ही नहीं गुमला जिले के जैरागी, डुमरी, विशुनपुर के बाजार में भी बिक्री किया जाता है. हमारे पास गाडि़यों से उतर कर मटके की डिमांड करने वाले की भी कमी नहीं. उसने बताया कि उच्च वर्ग के लोगों को आकर्षित करने के लिए अलग-अलग तरह से मटके तैयार करते है. टूटी वाले मटके लोग अधिक पसंद करते है व इसके अलावा रंगो से डिजाइन मटकों को लोग पसंद करते है. महंगाई का असर मिट्टी के इन बर्तनों की कीमत पर भी दिखने लगा है. दो-तीन वर्ष पहले जो मटके 30 से 50 रुपये में मिल जाते थे, वह अब 60 से 100 रुपये में मिल रहे है. जबकि डिजाइनों वाले घड़े 120 रुपये में बिक रहे है. उन्होंने बताया कि गर्मी बढ़ने से बिक्री में इजाफा जरूर हुआ है, लेकिन मौसम के मार से पिछले साल की तुलना में इस बार बिक्री कम दिखाई दे रही है. महुआडाँड़ के लोगों का कहना है कि विद्युत की बदहाल स्थिति में देसी फ्रिज ही कारगर साबित हो रहे है. इसे पेश से जुड़े दुकानदारों कुम्हार का कहना है कि अप्रैल व मई महीने में मिट्टी के बर्तनों की माग बढ़ने पर ही उनका कारोबार चलता है. इसमें रखे गए जल एक घटे के अंदर ही कमाल दिखाने लगता है. तपिश बढने पर इसका पानी ओर ठडा होने लगता है. बाजारों में 60 रुपये से 120 रुपये तक अनेकों क्वालिटी के घड़े बिक रहे है. मिट्टी के बर्तनों को लेकर इन दिनों कुम्हारों के चाक की गति बढ़ गई है.