महुआडांड़ /संवाददाता : लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखण्ड मुख्यालय से तकरीबन पचास किलोमीटर की दूरी पर झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र पर स्थित डुमरडीह ग्राम आजादी के इतने सालों के बाद आज भी विकास की किरणों से कोशो दूर है. ओरसापाठ पंचायत स्थित यह डुमरडीह गांव बिहड़ जंगल में अवस्थित है. महुआडांड़ प्रखण्ड से इस ग्राम में जाने के लिए संपर्क पथ तक का निर्माण नही हो सका है. जिस कारण इस ग्राम के लोगों को महुआडांड़ प्रखण्ड मुख्यालय आने के लिए बीहड़ जंगल का रास्ता तकरीबन बीस किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है तब कहीं जाकर इन्हें छोटी वाहन मिलती है. जंगल का रास्ता पैदल तय करने के दरम्यान इस क्षेत्र के लोगों को आये दिन कभी कभार जंगली जानवरों यथा कभी भालू तो कभी तेंदूआ आदि के द्वारा हमला कर क्षति भी पहुँचा दिया जाता है. जिसे बाद में वन विभाग के द्वारा चंद रूपये देकर अपना कर्तव्य पूर्ण समझ लिया जाता है. एक ओर जिले के उपायुक्त व उपविकाश आयुक्त विकास की किरण को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने की सोच को लेकर अधिकारीयों के साथ कभी बैठक कर रहें हैं तो कभी विभिन्न प्रखण्डों का दौरा कर संबंधित पदाधिकारियों को दिशा निर्देश देने का कार्य कर रहे हैं, बावजूद आज भी महुआडांड़ प्रखण्ड के कई ग्राम विकास की किरणों से अछूता है. और सबसे आश्चर्य की बात है कि इस ओर पदाधिकारियों की नजर भी नही जाती है.


ऐसा ही महुआडांड़ प्रखण्ड स्थित एक ग्राम डुमरडीह है. यहाँ आज तक कोई भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि का आगमन तक नही हुआ है. यही कारण है कि आजादी के इतने सालों के बाद भी इस गांव में सड़क, स्वास्थ्य केन्द्र की बात तो छोड़िए पेयजल हेतु एक चापानल तक नही है. इस गांव के रहने वाले लोगों को पेयजल हेतु गांव से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित झरने का पानी पर निर्भर रहना पड़ता है. यही कारण है कि गंदे पानी पीने के कारण कभी डायरिया तो कभी कुछ अन्य संबधित बिमारी के कारण यहाँ के लोगों की मौत भी हो जाती है. इन सब कारणों से इस गांव के रहने वाले लोगों में जनप्रतिनिधि व अधिकारीयों के प्रति काफी आक्रोश देखा जा रहा है. ग्रामीण लक्ष्मण यादव, देवलाल यादव, अरूण यादव, रामनन्दन यादव, सुमन्त यादव, आदि का कहना है कि यहां कोई विकास का कार्य हुआ ही नही है. न तो आने जाने के लिए संपर्क पथ है और न ही पेयजल हेतु चापानल ही. हमारी माँ बहनें तीन किलोमीटर की दूरी तय कर झरने से पानी ले जाती है. अधिकारी व जनप्रतिनिधियों के गांव आने के संबंध में ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय नेता लोग आते हैं व विकास करने का आश्वासन देकर चले जाते हैं।. वहीं अधिकारी भी कम नहीं हैं यहाँ कभी कभार अपनी रोटी सेंकने के लिए वे भी आ जाते हैं. हमने इस बार निर्णय लिया है कि यदि गांव में विकास कार्य नही किया जाता है तो इस बार हम चुनाव में वोट नही करेंगे.