साल 2019 का पहला चंद्र ग्रहण 21 जनवरी को लगने वाला है। इसे सुपर ब्लड वुल्फ मून भी कहा जा रहा है। आपने अक्सर फिल्मों में या कई बार हकीकत में भी देखा-सुना होगा कि आसमान में लाल चांद को देखकर भेड़िए चिल्लाने लगते हैं। क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे की सच्चाई आपको हैरान कर देगी।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक, सुपर मून या फुल मून पर चंद्रमा अन्य दिनों के मुकाबले धरती के सबसे करीब यानी 3,63,000 किमी की दूरी पर होता है। जब चंद्रमा पृथ्वी से सर्वाधिक दूरी पर होता है तब वह 4,05,000 किमी की दूरी पर होता है। चंद्रमा पर लगने वाली इस पूरी प्रक्रिया को नासा ने मोस्ट डैजलिंग शो यानी सबसे चमकदार शो कहा है।
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के रिसर्च साइंटिस्ट डॉ नोआह पेट्रो के मुताबिक सुपर मून पर चंद्रमा आम दिनों के मुकाबले 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी अधिक चमकदार होता है। इस दौरान चांद का रंग लाल तांबे जैसा नजर आता है, इसलिए इसे ब्लड मून कहा जाता है
ग्रहण के दौरान चंद्रमा के रंग बदलने पर वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौरान सूरज की रोशनी धरती से होकर चंद्रमा पर पड़ती है। हमारे ग्रह की छाया पड़ने की वजह से चंद्रमा का रंग ग्रहण के दौरान बदल जाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि तीन खगोलीय घटनाओं के संयोग से बन रहे इस पूर्ण चंद्र ग्रहण की रात को आसमान में अद्भुत नजारे दिखाई देंगे। हालांकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, लेकिन जिन क्षत्रों में भी दिखाई देगा वहां इस अद्भुत नजारे को बिना किसी उपकरण के खुली आंखों से देखा जा सकेगा।
इस ग्रहण को अमेरिकी जनजाती वुल्फ मून के नाम से जानती है। ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा की रात को भोजन की तलाश में निकलने वाले भेड़िये आसमान में लाल चांद को देखकर जोर-जोर से आवाज लगाते हैं यानी कि चिल्लाते हैं। इसलिए इस चंद्र ग्रहण को वुल्फ मून भी कहा जाता है।